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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२० उ.५सू०९ अनन्तप्रदेशिके सप्ताष्टमर्शगतभङ्गनि०९२३ एकत्रदेशे चत्वारो विरुद्धास्तु द्वितीयदेशे इति, एषु च स्पर्शेषु एकत्वानेकत्वाभ्यां भङ्गका भवन्ति, रूक्षपदेन एकव वनान्तेन बहुवचनान्तेन द्वौ, एतौ च स्निग्धै कवचनेन लब्धौ एतावेव स्निग्धबहुवचनं लभेते, एते चत्वारो भङ्गाः मूत्रे एव चतुष्केण दर्शिताः, तथा एतेष्वेव अष्टमु पदेषु उष्णपदेन बहुवचनान्तेन उक्त चतुर्भङ्गी से आठ स्पर्श होते हैं-द्विधा विकल्पित बादर स्कन्ध के एकदेश में चार और द्वितीय देश में दूसरे विरुद्ध चार स्पर्श रहते हैं इन स्पर्शों में एकत्व और अनेकत्व को लेकर भंग बनते हैं । रूक्षपद के एकवचनान्त से और बहुवचनान्त से दो भा बनते हैं, पहिला भंग और तीसरा भंग रूक्षपद के एकवचनान्त से बने हैं तथा-द्वितीय और तृतीय भंग रूक्षपद के बहुवचनान्त से बने हुए हैं इसी प्रकार से स्निग्ध के एकवचनान्त से प्रथम भंग और द्वितीय भंग बने हैं और स्निग्धपद के बहुवचनान्त से तृतीय भंग और चतुर्थ भंग बने हैं। यह बात 'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए देसे लहुए, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे' इस प्रकार के कथन में जो चार भंग बने हैं, उनके विषय में कही गई है, 'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीए, देसा उसिणा, देसे निद्धे, देसे लुक्खे' इस प्रकार के कथन में पूर्वोक्त कथन से यही भिन्नता है कि यहां उष्णपद को बहुवचनान्त किया गया है पूर्वोक्त कथन में उष्णपद एकવાથી આઠ સ્પર્શી થાય છે. બે પ્રકારના વિકલ્પવાળા બાદશ સ્કંધના એકદેશમાં ચાર અને બીજા દેશમાં બીજા અવિરૂદ્ધ ૪ ચાર પશે રહે છે. આ સ્પર્શોમાં એકપણા અને અનેક પણને લઈને ભાગે બને છે. રૂક્ષ પદના એકવચનના તથા બહુવચનના પ્રયોગથી બે ભંગ થાય છે. પહેલે અને ત્રીજો ભંગ રૂક્ષ પદના એકવચનના પ્રયોગથી બને છે, તેમજ બીજો અને ત્રીજો ભંગ ફેક્ષ પદના બહુવચનના પ્રયોગથી થાય છે. એ જ રીતે સ્નિગ્ધ પદના એકવચનના પ્રયોગથી પહેલે અને બીજો ભંગ થયેલ છે. અને સિનગ્ધ પદના બહુવચનના प्रयोगथी श्री सन याय। म थाय छे. गत पात देसे कक्खडे देसे मठए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे' આ પ્રકારના કથનમાં જે ચાર ભેગા થાય છે. તેના સંબંધમાં કહી છે. 'देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसा उमिणा देसे मिद्धे देसे लुक्खे' मा ४२ना थनमा पूति नथी मेल ३२३२ छ।આ પ્રકારમાં ઉષ્ણ પદને બહુવયનાન કર્યું છે. બાકીને રૂક્ષ સ્નિગ્ધ પદના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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