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________________ ८६४ भगवतीस्त्र सव्वे सीए देसे गरुए देसे लहुए देसे सिद्धे देसे लुक्खे' सर्वः कर्कशः सर्वः शीतः देशो गुरुको देशो लघुको देशः स्निग्धो देशो रूक्षः, 'एवं जाव सम्वे मउए सव्वे उसिणे देसा गरुया देसा लहुया देसा निद्धा देमा टुकवा' एवं यावत् सर्बो मृदुकः सर्व उष्णो देशा गुरुताः देशा लघु काः देशाः स्निग्धाः देशा रूक्षाः, 'एत्थ वि चउसढि भंगा' अत्रापि चतुःषष्टिभङ्गाः करणीयाः यथा सर्व कर्कश सर्व गुरुतस्थले परिपाटया चतुःषष्टि भङ्गाः प्रदर्शिता स्तथैव गुरुस्थाने लघुक निवेश्य कर्कशस्थाने मृदुकं च निवेश्य शीतोष्णस्निग्धशादौ सनुदायों के ६४ भंग हो जाते हैं, 'सम्वे कावडे, सम्बे सीर, देते गरुए, देसे लहुए, देले निद्धे, देसे लुखे' सश में वह कर्कश, सर्वाश में शीत, एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, एकदेश में स्निग्ध और एकदेश में रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है इस प्रकार के इस प्रथम भंग से लेकर 'एवं जाच सव्वे मउए, सम्वे उसिणे, देमा गरुया, देसा लहुया देसा निद्धा, देसा लुक्खा' यावत् वह सर्वाश में मृदु, सर्वाश में उष्ण, अनेक देशों में गुरु, अनेक देशों में लघु, अनेक देशों में स्निग्ध और अनेक देशों में रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है यहां तक कथन में 'एत्थ वि चरसहि भंगा' ६४ भंग होते हैं ऐसा जानना चाहिये, जिस प्रकार से सर्व कर्कश और सर्वगुरुक स्थल में परिपाटी से ६४ भंग दिखलाये जा चुके हैं उसी प्रकार से गुरु के स्थान में लघु. पद का निवेश करके और कर्कश के स्थान में मृदुकपद का निवेशकर या प्रशथी पुस १४ यास मग 45 लय छे. 'सव्वे कक्खडे सव्वे सीए देसे गरुए, देसे लहुए देसे निद्धे देसे लुक्खे' ते पाताना साशथी ४२ સર્વાશથી શીત એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળ હોય છે. આ રીતના આ પહેલા ભંગથી આર. नीर एवं जाव सव्वे महुए सव्वे उसिणे देसा गरुया देसा लहुया देसा निद्धा देसा लुक्खा' यावत् ते सशमा भृढ सशिमi By मने देशमा १३ અનેક દેશોમાં લઘુ અનેક દેશમાં સ્નિગ્ધ અને અનેક દેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શ १ डाई छ. म अधीना थनमा 'एत्थ वि चउसढि भंगा' में ४थन પ્રમાણે અહિયાં પણ ૬૪ ચોસઠ ભંગ થાય છે. તેમ સમજવું. જે રીતે સર્વ કર્કશ અને સર્વ ગુરૂને સ્થાને ક્રમથી ૬૪ ચેસઠ ભેગે બતાવવામાં આવ્યા છે. એ જ રીતે ગુરૂ પદને સ્થાને લઘુ પર મૂકીને અને કર્કશ સ્થાને મુ પદ રાખીને અને શીત, ઉષ્ણ સ્નિગ્ધ રૂક્ષ વિગેરે પદોમાં ક્રમથી એક શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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