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________________ ६५८ भगवतीस्त्र सिय नीलगाय हालिद्दए य मुक्किलगा य६, सिय नीलगा य हालिहगा य सुकिल्लए य स्थान नीलो हारिद्रः शुक्लश्चेति प्रथमः १, स्यात् नीलश्च हारिद्रश्च शुक्लश्चेति द्वितीयः २, स्यात् नीलश्च हारिद्राश्च शुक्लश्चेति तृतीयः ३, स्यात् नीलश्च हारिद्राश्च शुक्लाश्चेति चतुर्थः ४, स्यात् नीलाश्च हारिद्रश्च शुक्लाश्चेति पश्चमः ५, स्यात् नीलाश्च हारिद्रश्च शुक्लाश्वेति षष्ठः, स्यात् नीलकाश्च हारिद्राश्च शुक्लश्वेति सप्तमः। 'लोहियहालिहसुकिल्लेसु' एवं लोहितहारिद्रशुक्लेष्वपि सप्तभङ्गा भवन्ति तथाहि-'सिय लोहियए हालिदए सुक्किल्लए य १, सिय लोहियए हालिइए य मुकिल्लगा य२, सिय लोहियए य हालिद्दगा य मुक्किलए य ३, सिय लोहियए य हालिद्दगा य सुकिलगा य ४, सिय लोहियगा य हालिइए य सुकिल्लए य५, सिय लोहियगा य हालिदए य सुकिल्लगा य६, सिय वह एक प्रदेश में नील अनेक प्रदेशों में पीत और अनेक प्रदेशों में शुक्ल भी हो सकता है ४ अथवा-अनेक प्रदेशों में नील एक प्रदेश में पीत और एक प्रदेश में शुक्ल भी हो सकता है ५ अथवा-अनेक प्रदेशों में वह नील एक प्रदेश में पीत और अनेक प्रदेशों में शुक्ल भी हो सकता है ६ अथवा अनेक प्रदेशों में नील अनेक प्रदेशों में पीत और एक प्रदेश में शुक्ल भी हो सकता है ७ 'लोहिय हालिद्द सुक्किल्लेसु' लोहित पीत और शुक्ल इन तीन वर्णों के संयोग में भी ७ भंग होते हैं-जो इस प्रकार से हैं-'सिय लोहियए हालिहए सुक्किलए य १।' सिय लोहियए य हालिद्दए सुक्किलगाय २, सिप लोहियए य हालिहगा य मुक्किलए य ३, सिय लोहियए य ल्लए य ५' भयापोताना भने प्रदेशमा नाAqामी हाय छे. से પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે. તથા એક પ્રદેશમાં સફેદવર્ણવાળ હોય छ. मापायी म छे. 'सिय नीलगा य हालिहए य सुकिल्लगा य ६' અથવા તે પિતાના અનેક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળ હોય છે. એક પ્રદેશમાં પીળાવવાળ હોય છે. અને અનેક પ્રદેશમાં વેતવર્ણવાળે પણ હોઈ શકે ७. ॥ ७४ी छ । 'सिय नीलगा य हालिहगा य सुक्किल्लए य ७' अथवा તે પિતાના અનેક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળે હોય છે. અનેક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળ હોય છે તથા એક પ્રદેશમાં સફેદવર્ણવાળ હોય છે. આ સાતમે छ. ७ 'लोहियहालिसुकिल्लेसु सत्तभगा' तास, पागा भने તપણું આ ત્રણેના ચોગથી પણ ૭ સાત ભંગ બને છે. જે આ પ્રમાણે --सिय लोहियए हालिद्दए सुक्किल्लए य १' 10 पा२ ते सास वाणा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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