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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ५९७ वेति चतुर्थः, तदेवं संकलनया चत्वारो भंगा भवन्तीति । 'स्यात् पीतश्च शुक्लन अत्रापि चत्वारो भंगास्तथाहि स्यात् पीतश्च शुक्लश्व प्रदेशयोः पीतत्वात् प्रदेशयोः शुक्लत्वच्चेति प्रथमः, स्यात् पीतश्च शुक्लाश्च प्रदेशमात्रस्य पीतत्वात् प्रदेशत्रयाणां शुक्लत्वादिति द्वितीयो भङ्गः, स्यात् पीताश्व शुक्लश्च प्रदेशत्रयाणां पीतत्वात् प्रदेशमात्रस्य शुक्लस्वात् इति तृतीयो भङ्गः, स्यात् पीताश्व शुक्लाश्चेति चतुर्थो भंगस्तदेव चत्वारो भंगा इहापि भवन्तीति भावः । एवं एए दसया संजोगा भंगा पुग चत्तालीसं' एवमेते दशद्विकसंयोगा भङ्गाः पुनश्चत्वारिंशद् भी हो सकते हैं और एक प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है ३ स्यात् लोहिताश्व शुक्लाश्च४ कदाचित् उसके अनेक अंश लाल और अनेक अंश शुक्ल भी हो सकते हैं ४इसी प्रकार से 'स्थात् पीतश्च शुक्लश्च' यहां पर भी ४ मंग होते हैं प्रथम भंग में कदाचित् उसके दो प्रदेशपीले भी हो सकते हैं और दूसरे दो प्रदेश सफेद भी हो सकते हैं स्यात् पीतश्च शुक्लाश्च 'कदाचित् उसका एक प्रदेश पीला भी हो सकता हैं और तीन प्रदेश शुक्ल भी हो सकते हैं। 'स्थात् पीताश्च शुक्लश्च कदाचित् उसके तीन प्रदेश तो पीले हो सकते हैं और एक प्रदेश शुक्ल भी हो सकता है ' स्यात् पीताश्च शुक्लाश्च' कदाचित् उसके अनेक अंश पीले भी हो हो सकते हैं और दूसरे अनेक अंश सफेद भी हो सकते हैं एवं एए दस दुया संजोगा भंगा पुण चत्तालीसं' इस प्रकार से ये दशद्धिक संयोगी श्री छ. 'स्यात् लोहिताश्च शुक्लःश्व४' तेन भने म Rajan પણ હોઈ શકે છે. અને અનેક અંશે વેળા વર્ણવાળા હોય છે. એ રીતને આ ચેાથે ભંગ છે. આજ રીતે પીળાવણું સાથે ધોળાવને જવાથી ૪ ચાર બંગો બને છે. તે આ પ્રમાણે છે. स्यात् पीतश्च शुक्लश्च' मा पता Amiतना प्रदेश पy वाणा डाय छे भने oiln में प्रश। घाा ५५ डाय छे. 'स्यात् पीतश्च शुक्लाश्च२, आयतेने से प्रदेश पाव वाले। ५६५ डाय छे. मने र પ્રદેશ ધોળા વર્ણવાળા પણ હોય છે. આ રીતે આ બીજો ભંગ બને છે. 'स्यात् पीताश्च शुक्लश्च३' आय तेना प्रश। पी डा છે. અને એક પ્રદેશ ધેળાવણુંવાળ પણ હોય છે. આ રીતે આ ત્રીજો ભંગ मने छ 3 'स्यात् पीताश्च शुक्लाश्च४' हायित तेना भने म पी ५५] डाय छे. मन भी मश घाणा ५ डाय छे. 'एवं एए दस दुया संजोगा भंगा पुणचत्तालीसं' या शतना वि सयाजी स मा ४० यालीस प्रारना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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