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________________ ५१८ भगवती सूत्रे च्छत्वात् स्फटिक मिति २५, 'अनंते वा' अनन्तमिति वा अन्तः पर्यवसानं - समाप्तिस्तद्रहितत्वादनन्तम् इति२६, 'जे यावन्ने' यानि चाप्यन्यानि कथितव्यतिरिक्तानिः 'तहपगारा सच्वे ते आगासत्थिकायस्त अभिनयणा' तथा प्रकाराणि आकाशस्वाभिधायकानि - सामान्यतो विशेषतो वा शब्दाः सर्वाण्यपि तानि आकाशास्तिकायस्य- अभिवचनानि भवन्तीत्यर्थः । 'जीवत्थिकायस्स णं भंते !" जीवास्तिकायस्य खलु भदन्त ! 'केवइया अभिवयणा पनत्ता' कियन्ति अभि वचनानि - पर्यायशब्दाः प्रज्ञप्तानि - कथितानि इति जीवास्तिकायपर्यायशब्दविषयकः प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'अणेगा अभित्रणा पन्नत्ता' अनेकानि अभिवचनानि - पर्यायशब्दाः प्रज्ञप्तानि कथितानीति कानि च तानि पर्यायववनानि जीवास्तिकायस्य तत्राह - 'तं जहा ' तद्यथा'जीवेइ वा १' जीव इति वा जीवनात् जीव इति वा १, 'जीवत्थिकाइ वा २' से यह स्फटिक के जैसा है अतः इसका नाम भी स्फटिक हो गया है इसलिए इसे स्फटिक कहा गया है 'अनंतेइ वा २६' अनन्त भी इसका नाम है क्योंकि यह अन्त समाप्ति से रहित है इसी प्रकार के 'जे यावन्ने तहपगारा सव्वे ते आगासत्धिकायस्स अभिवषणा' जो और भी दूसरे नाम हो वे सब भी आकाशास्तिकाय के अभिधायक शब्द हैं ऐसा जानना चाहिए। अब गौतम जीवास्तिकाय के अभिधायक शब्दों को जानने के अभिप्राय से प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि 'जीवस्थिकायस्त णं भंते ! केवइया अभिवयणा पन्नता' हे भदन्त ! जीवास्तिकाय के अभिधायक पर्यायवाची शब्द कितने हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता' हे गौतम! जीवास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द अनेक हैं 'तं जहा' जैसे- 'जीवेइ वा' जीव जो पाँच छे तेथी तेने 'स्टडेवामां आवे छे.२५ 'अणतेह वा' 'अनंत' એવુ પણ તેનુ' નામ છે. કેમ કે તે અન્ત-સમાપ્તિ વિનાનુ છે. આ રીતે 'जे यावन्ने तत्पगारा सव्वे वे आगासत्थिकायरस अभित्रयणा' मा पूर्वेति उद्या શિવાયના બીજા પણ જે નામ તેના હેાય તે તમામ પણ આકાશાસ્તિકાયના અભિધાયક-પર્યાષવાચક શબ્દ છે તેમ સમજવુ. - હવે ગૌતમસ્વામી જીવાસ્તિકાયના પર્યાયવાચક શબ્દને જાણવાની रिछाथी अलुने खेवु छे छे है- 'जीवत्थिकायस्स णं भंते! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता' हे भगवन् वास्तियना पर्यायवाय शब्दो डेटला हे ? तेना उत्तरमा प्रभु उडे छे है 'गोयमा !' हे गौतम! 'अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता' वास्तिमायना पर्यायवाय शहो भनेउ छे, 'तंजहा' ते या प्रमाणे छे. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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