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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०२ सू०२ धर्मास्तिकायादिनामेकार्थकनामनि० ५११ वा' अस्तिकाय इति वा 'पाणाइझाएर वा' माणातिपातइति वा, 'जावमिच्छादमणमल्ले वा' यापन्मिथ्यादर्शन शल्यमिति वा अत्र यावत्पदेन मृषावादादारभ्य मायामृषापर्यन्त षोडशपदानां संग्रहो भरतीति । ईरिया असपि ईइवा' ईस मितिः- इर्ष्यासमित्मभाव इति वा 'जाव उच्चारपासवण जाव पारिद्रावणिया समिईइ वा' यावत् उच्चारस्रवण यावत् पारिष्ठापनिकाऽसमितिरिति वा अत्र प्रथमयास्पदेन ' भासा समिई वा एसा असमिईइ वा आयागभंड त्तनिखेवणा अभिई वा' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति द्वितीययावत्पदेन 'खेलजललसिंचाण' इत्येतेषां पदानां ग्रहणं भवति । 'मण अगुत्तीइ वा' मनोऽगुप्तिरिति वश, 'वइ अगुती वा' वचोऽगुप्तिरिति वा, काय अगुती वा' कायाऽपृप्तिरिति वा 'जे तिपात 'जाव मिच्छादंसणसल्लेह वा' यावत् मिथ्यादर्शन ये सब अबमस्तिकाय के पर्यायशब्द हैं। यहां यावत् शब्द से पूर्वोक नृपावाद से लेकर मायामुषा तक के १६ पदों का संग्रह हुआ है । 'ईरियासमिईवा' इर्या असमिति इर्यासमिति का पालना नहीं करना उसका अभाव रहना 'जाव उच्चारपासवण जाव पारिद्रावणिया असमिईह वा' यावत् उच्चार प्रस्त्रवण यावत् परिष्ठापनिका समिति का अभाव होना यह समित्यभाव भी अधर्नास्तिकाय का पर्याय शब्द है यहां प्रथम यावत् शब्द से 'खासा असमिई हवा एसणा असपिई वा आपण भंडमत्त निवखेत्रणा असमिई वा' यहां तक का पाठ गृहीत हुआ है तथा द्वितीय यावत् शब्द से 'खेल्ल जल्लसिंघाण' इन पदों का ग्रहण हुआ है 'मण अगुती वा' मनोगुप्ति का अभाव 'वय अगुत्तीह वा' वचनगुप्ति का अभाव काय अगुत्तीइ वा' कायगुप्ति का अभाव तथा 'जे यावन्ने वा' अधर्मास्ति 'पाणाइवाए इ वा' प्रातियात 'जाव मिच्छा दंसण सल्लेइ વા' યાવત્ વિશ્વાપયનશલ્ય એ બધા અધર્માસ્તિકાયના પર્યાયવાચક શબ્દો છે. અહિપાં ચાવત્ શબ્દથી પૂર્વોક્ત મૃષાવાદથી આરંભીને માયા મૃષા સુધીના सोज होना संग्रह थयो छे. 'ईरिया असमिई वा' असमिति समितिनुं पावन न उरवु' तेनेो मभाव रहेवे। 'जाव उच्चारपासवण जाव परिट्ठाबनिया असमिई वा' यावत् प्रस्रवण यावत् परिष्वापनि समितिने अलाव પણ અધર્માસ્તિકાયના પર્યાયવાચી શબ્દો છે અહિયાં યાવત્ શબ્દથી ‘માતા असमिई वा' एसणा असमिई वा आयाणभांडमत्तनिक्वणा असमिईवा' थे वाय सुखीना पाह श्रणु उरायो छे तथा सीन यावत् शब्दथी खेल्लजल्ल सिंघाण' अणु उराया छे. 'मणअगुत्ती इ वा' मनोगुप्तिना अभाव 'वय अगुत्ती वा' वनगुप्तिनो अलाव 'काय अगुत्ती इ वा अयशुप्तिनो अभाव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩ -
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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