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________________ ४७८ भगवती सूत्रे ग्रहणं भवति एतादृशविशेषणविशिष्टो गौतमः किमवादीत् तत्राह - सिय' इत्यादि, 'सिय भंते!' स्याद् भदन्त ! अत्र स्यादिति अव्ययं तिङन्तमतिरूपकं संभवेदिस्यर्थकम्, 'जाव चचारि पंच बेइंदिया' यावत् चत्वारः पञ्च द्वीन्द्रिया जीवाः यावत्पदेन द्वयोस्त्रयाणां संग्रहः तथा च द्वौ वा त्रयो वा चत्वारः पञ्च वा द्वीन्द्रिया जीवा इत्यर्थः ' एगयओ' एकत: - एकीभूय - संयुज्येति यावत्, 'साहारण सरीरं' साधारणशरीरम् 'बंधंति' वध्नन्ति अनेकजीवसामान्यम् अनेकजीवोपभोग्यम् - अनेकजीव भोगाधिष्ठानमिति यावत् बध्नन्ति प्रथमतया तत् प्रायोग्यपुद्गलग्रहणतः कुर्वन्तीत्यर्थः । 'बंधित्ता' एकतो मिलित्वा - साधारणशरीरं वदध्वा टीकार्थ-- 'रायगिहे जाव एवं वयासी' यहां यावस्पद से 'भगवान् का समवसरण हुआ' यहां से लेकर 'प्राञ्जलिपुटवाले गौतम ने ' यहां तक का प्रकरण गृहीत हुआ है तथा च-राजगृहनगर में प्रभु का समवसरण हुआ प्रभुका आगमन सुनकर परिषद् धर्म का व्याख्यान सुनने के लिये उनके पास आई प्रभु ने धर्म का उपदेश दिया धर्मोपदेश सुनकर परिषद विसर्जित हो गई इसके बाद पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट गौतम ने प्रभु से इस प्रकार पूछा- 'यि भंते ! जाव चत्तारि पंच बेहंदिया एगयभो साहारणसरीरं बंधंति' 'सिय' स्यात् यह पद तिङन्त प्रतिरूपक अव्यय है और इसका अर्थ संभव हो सकता है' ऐसा है 'जाव चत्तारि' में आगत पावत्पद से 'दो और तीन' का संग्रह हुआ है तथा च-दो अथवा तीन, अथवा चार अथवा पांच द्वीन्द्रिय जीव मिलकर अनेक जीवोपभोग्य साधारण शरीर का बन्ध करते हैं ऐसी बात क्या संभवित हो सकती है ? तथा एकत्रित अर्थ :- रायगिहे जाब एवं वयासी' गृहनगरमा लगवाननु सभ વસરણ થયું. પ્રભુનું આગમન સાંભળીને પરિષ પ્રભુને વંદના કરવા તૈ પાસે આવી. પ્રભુએ ધર્માંદેશના આપી ધદેશના સાંભળીને પરિષદ્ પ્રભુને વદન નમસ્કાર કરીને પાતપેાતાને સ્થાને પાછી ગઈ તે પછી ગૌતમ સ્વામી यो भन्ने हाथ लेडीने घाणा ४ विनयथी अलुने या प्रभा पूछयु' 'सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच बेइंदिया एगयओ साहारणसरीरं बंधंति' मडियां 'सिय' 'स्यात् ' मे तिङ्न्त प्रति अव्यय छे भने तेना अर्थ संभव होई श छे. ये प्रमाणे छे. 'जाव चत्तारि' भां यावेत यावत्यथी मे मने त्रण श्रणु કરાયા છે. એ અથવા ત્રણ અથવા ચાર અથવા પાંચ એ ઈન્દ્રિય જીવે મળીને અનેક જીવાને ભેગવવા લાયક સાધારણ શરીરના બંધ કરે છે? એવી વાત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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