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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ ३०३ सू०४ पृथ्वीकाथिकानामवगाहनाप्रमाणनि० ३६३ मालिन्ययुक्तम् 'झिये' झुंझितं म्लानं बुभुक्षितम् एतावदेव न किन्तु 'पिवासिय' पिपासितं पिपासाव्याकुलमिति दुबेलं शारीरिकवलरहितं क्लान्तम् - मानसव्यथान्यथितशरीरमित्यर्थः 'जुगलपाणिणा' युगलपाणिना हस्ताभ्यामित्यर्थः 'शुद्धागंसि' मुर्द्धनि मस्तके 'अभिहणेज्जा' अभिहन्यात् यथा कश्चित् युवा पुरुषः सर्वथा शरीरसमृद्धिमान हस्ताभ्यां कमपि जीर्णादिविशेषणविशिष्टं वृद्धं मस्तके ताडयेदित्यर्थः ' से णं गोयमा ! पुरिसे' स खल गौतम ! पुरुषः स जराजर्जरितदृद्धशरीर इत्यर्थः ' ते णं पुरिसेणं तेन पुरुषेण यूना 'जुगलपाणिणा' युगलपाणिना मुद्धाणंसि अभिहर समाणे' मुर्द्धनि अभिहतः सन् 'केरिस वेयणं' कीदृशीं वेदनाम् 'पच्चणुभवमाणे विहरइ' प्रत्यनुभवन् विहरति बलवता यूना युगलपाणिना मस्तके ताडितो वृद्धपुरुषः कीदृशीं वेदनामनुभवन्नवस्थितो भवतीति भगवतो वितर्कः गौतम आह- ' अहिं समणाउसो' अनिष्टं श्रमण ! तृष्णा - तृषा से जिसका मन अशान्त बना हुआ है । 'आउरं' अतएव जो घबरायासा है 'झुंझियं' 'झुझालायासा है या बुभुक्षित है प्यासा है दुर्बलशारीरिक बल से जो रहित है क्लान्त-मानसिक व्यथा से जिसका शरीर व्यथित है 'जमलपाणिणा' अपने दोनों हाथों से 'मुद्धाणंसि' मस्तक के ऊपर प्रहार करे अर्थात् सर्व प्रकार से शारीरिक समृद्धिशाली युवापुरुष अपने दोनों हाथों से किसी जीर्णादिविशेषण विशिष्ट वृद्ध पुरुष को उसके मस्तक के ऊपर ताडित करे तो 'से णं : गोयमा !' हे गौतम ! वह जरा से जर्जरित हुआ शरीरवाला पुरुष 'तेणं पुरिसेणं०' उम्र पुरुष के द्वारा मस्तक पर चोट पहुंचाये जाने पर 'केरिसयं वेधणं०' किस प्रकार की वेदना का अनुभव करता है ? इस प्रकार से प्रभु के द्वारा पूछे जाने पर गौतमने कहा- 'अनिहं समणाउसो' होय 'आउरं' मने मान अरगोथी ने जलराध गयो होय 'झुंझिय' भुलये। હાય, અર્થાત્ ભૂખ અને તરસથી વ્યાકૂળ, શારીરિક અલ વિનાના થાકેલે માનસિક પીડાથી જેનું શરીર પીડાવાળું હોય એવા પુરૂષને પૂર્વક્તિ અલવાન્ पुरुष 'जुगलपाणिणा' पोताना अने हाथोथी 'मुद्धाणंसि' भाथा उपर પ્રહાર કરે અર્થાત્ દરેક પ્રકારના શારીરિક ખલ વિગેરેથી સમૃદ્ધિવાળા યુવાન પુરુષ પેાતાના ખન્ને હાથેાથી કેાઈ જીણુ શીશુ વિગેરે વિશેષણુંવાળા વૃદ્ધ पुरुषने तेना भाथा पर भारे तो 'से णं गोयमा !' हे गौतम! ते गढपशुथी नभरित शरीरवाणेो पुरुष 'तेण पुरिसेण' ते पुरुष द्वारा भक्त ५२ धा भारवामां आवे त्यारे 'केरिसयं वेयणं' देवी बेहनाने! अनुभव रे छे ? मा પ્રમાણે પ્રભુ દ્વારા પૂછવામાં આવ્યું ત્યારે ગૌતમ સ્વામીએ કહ્યું શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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