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________________ ३४६ भगवती सूत्रे 'करे कre' कतरः कायः को जीवनिकायः 'सन्मुहुमतराए' सर्वसूक्ष्मतरकः, पृथिवीकायिकादारभ्य तेजस्कायिकान्तेषु सर्वतः सूक्ष्मतरकः क इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'उक्काए सब्बहुये ' तेजस्कायः सर्वक्ष्नः 'उक्काइए सबहुमतराए' तेजस्कायः सर्वसूक्ष्मतरकः पृथिव्यादि तेजसान्तेषु सर्वतः सूक्ष्मतरस्तेजस्काय एवेति ३ । 'एयस्स णं भंते!' एतस्य खलु भदन्त | 'पुढचीकाइयस्स आउकाइयस्स' पृथिवीकायिकस्यापकायिकस्य अनयोर्द्वयोर्मध्ये 'कयरे काए सन्त्रमुहुमे' कतरः कायः सर्वक्ष्मः ' कयरे काए सबहुमतराए' कतरः कायः सर्वसूक्ष्मतरकः पृथिव्यपकायिकयोर्मध्ये कतरः कायः सूमः कतरः कायः सर्वतः सूक्ष्मतरक इतिप्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'आउक्काए सन्यसुहुमे' अष्कायः सर्वसूक्ष्मः 'आउकार सन्वसुमतराए' अष्कायः सर्वसूक्ष्मतरकः पृथिव्यष्कायिकयोर्मध्ये austra सर्व सूक्ष्मतरक इतिभावः ४ । तदेवं पञ्चस्थावराणां सूक्ष्मत्वं निरू पितमतः परं तेषामेव बादराणां बादरत्वनिरूपणायाह- 'एयस्स णं भंते' इत्यादि । और तेजस्कायिक इन तीन जीवनिकायों में कौनसा जीवनिकाय सर्वसूक्ष्म और सर्वसूक्ष्मतर है उत्तर में प्रभु ने कहा- 'गोयमा ! उक्काए समे' हे गौतम ! इन तीन जीवनिकार्यों में तेजस्कायिक ही सर्वसूक्ष्म और सर्वसूक्ष्मतर है ३ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'एयरस णं भंते! पुढवीकाइयस्स आउक्काइस्स०' हे भदन्त ! इन पृथिaratfयक और अकायिक में कौनसा जीवनिकाय सर्वसूक्ष्म और सर्वसूक्ष्मतर है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा अउक्काए सव्वसुहमे" हे गौतम! अकाधिक ही इन दोनों में से सर्वसूक्ष्म और सूक्ष्मतर है। इस प्रकार से इन पांच स्थावरों में सूक्ष्मता का निरूपण किया अब इन्हीं के भेद रूप बादरों में बादरता का निरूपण किया કાચિક અને તેજસ્કાયિક આ ત્રણ જીવનિકાયામાં કયા જીવનિકાય સવથી सूक्ष्म भने सर्व सूक्ष्मतर छे ? तेना उत्तरमा अलु हे छे है- 'गोयमा ! तेस्कार सम्बमुहुमे० ' डे गौतम यात्रा भवनिप्रायोमा तेलस्थायिन સર્વ સૂક્ષ્મ અને સૂક્ષ્મતર છે, ૩ वे गौतम स्वामी असुने येवु छे छे - 'एयरस णं भंते ! पुढवीकाइयरस आउकाइयस्स ०' हे भगवन् या पृथ्विमासिक इसने सामायि भां ક્રયા જીવનિકાય સથી સૂક્ષ્મ અને સર્વ સૂક્ષ્મતર છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अलु छे - 'गोयमा ! आउक्काए सव्वसुडुमे० ' हे गौतम! अप्ायि ४ આ બન્નેમાં સર્વ સૂક્ષ્મ છે. અને સૂક્ષ્મતર છે. આ રીતે આ પાંચ સ્થાવરામાં સુક્ષ્મતાનું નિરૂપણ કર્યું. હવે તેના જ ભેટ રૂપ ખાદામાં ખાદરપણાનું શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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