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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू०५ वस्तुतत्वनिरूपणम् २७३ गौतमः हे भदन्त ! इत्येवं रूपेण भगवन्तं संबोध्य भगवान् गौतमः 'समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसई' श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति 'वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' वन्दित्वा नमस्यित्वा एवम्-वक्ष्यमाण वचनम् अवादीत् उक्तवान् किमुक्तवान् तत्राह-'पभू णं भंते !' मभुः-समर्थः खलु हे भदन्त ! 'सोमिले माहणे सोमिलो ब्राह्मगः 'देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडो भवित्ता०' देवा. नुप्रियाणामन्तिके मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रवजितुम् अत्रातिदेशमाह'जहेब संखे तहेव निरवसेसं जाव अंतं काहिइ' यथैवात्र द्वादशे शते प्रथमोद्देशके शंखः तथैव निरवशेष याचद् अन्तं करिष्पति हे भदन्त ! भवदन्तिके दीक्षामादाय प्रजिष्यति सोमिलः किमितिगौतमपश्ने शंखश्रावकदृष्टान्तो वाच्यः करते हुए 'समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसह' श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की नमस्कार किया 'बंदित्ता नमंसित्ता' वन्दना नमस्कार करके फिर उन्होंने प्रभु से 'एवं बधाती' ऐसा पूछा 'पभू णं भंते ! सोमिले माहणे' हे भदन्त ! सोमिल ब्राह्मण क्या 'देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता०' आप देवानुप्रिय के पास मुंडित होकर अगारावस्था से अनगारास्था धारण करने के लिये क्या समर्थ है 'जहेव संखे' हे गौतम ! १२ वें शतक के प्रथम उद्देशक में शव के विषय में जैसाकथन किया गया है वही सब कथन यहां पर भी इसके विषय में कर लेना चाहिये अर्थात् जय गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया कि हे भदन्त ! आपके पास क्या सोमिल भागवती दीक्षा धारण करेगा ? तो प्रभु ने उनसे कहा हे गौतम ! इस विषय में यहाँ पर शङ्ख श्रावक का दृष्टान्त कह लेना चाहिये जिस प्रकार से शङ्कः श्रावक ने श्रावकधर्मका पालन भावार ना ४२ नभ२४.२ ४. 'वंदित्ता नमंसित्ता' 4 नभा२ उरीने ते ५७ तमामे प्रभुने ‘एवं वयासी' ! प्रमाणे ५७यु'. 'पभूणं भंते ! सोमिले माहणे' है मापन सौमित प्राय 'देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता' मा५ हेवानुप्रियनी पासेहीक्षा स्वीतरीन मार माथी सन॥२ अवस्था धा२३ री शशे ? 'जहेव संखे०' ७ गौतम, १२ मारमा શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં શંખના વિષયમાં જે પ્રમાણે કથન કરવામાં આવ્યું છે. તે સઘળું કથન અહિયાં આ સોમિલના વિષયમાં સમજવું અર્થાત જ્યારે ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એ પ્રશ્ન કર્યો કે–હે ભગવન આપની પાસે સેમિલ બ્રાહ્મણ દીક્ષા ધારણ કરશે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુએ કહ્યું કે હે ગૌતમ! આ વિષયમાં અહિયાં શંખ શ્રાવકનું દૃષ્ટાંત સમજવું ખ શ્રાવક જે રીતે શ્રાવક શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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