SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसत्रे हे गौतम ! 'चउहि ठाणेहि' चतुर्भिः स्थानैः 'तं जहा तद्यथा 'कोहेणं जाव लो भेग' इति क्रोधेन यावत् लोभेन-अत्र यावत्पदेन मागमाययोग्रहणम् तथा च क्रोधमानमायालोमभेदेन कपायाश्वतुष्प्रकारका भवन्ति निरयावासस्थितानां नारकजीवानामष्टापि कर्माणि उदये वर्तमानानि भवन्ति उदयवर्तिनां च कर्मणामवश्यमेव निर्जर णं कपायोदयवर्तिनश्च ते नारकादयो जीवाः ततश्व कपायाणामुदये कर्म निर्जराया अवश्यमेव संमवात् क्रोधमानमायालोभै वैमानिकानामष्टकर्मणां निर्जरणम् भवतीति कथ्यते इति । अनन्तरं कषायाः क्रोधादारभ्य लोमान्ता निरूपिताः ते व कषायाः चतुःसंख्यत्वात् कृतयुग्मलक्षणसंख्याविशेषवाच्या भवन्तीत्यतो युग्मस्वरूपप्रतिपादनाय आह-'कइ गं भंते ! जुम्मा पन्नत्ता' कति खलु भदन्त ! युग्मानि राशयः प्रज्ञप्तानि इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा!' इत्यादि । 'गोयमा!' की निर्जरा करेंगे? उत्तर में प्रभुने कहा है 'गोयमा' हे गौतम ! 'चउहिं ठाणेहि' चार स्थानों से तं जहा-जैसे 'कोहेणं जाव लोभेणं' क्रोध से यावत् लेाभ से यहां यावत्पद से मान माया का ग्रहण हुआ हैं तथा च-क्रोध मान माया और लेम के भेद से कषायें चार प्रकार के होते हैं । नरकावास में स्थित नारक जीवों के उदय में आठों कर्म वर्तमान होते हैं । उदयवर्ती कर्मों की निर्जरा आवश्य ही होती है वे नारक जीव कषायोदयवर्ती होते हैं इससे यह मानना चाहिये कि कषायोदय में कर्म निर्जरा अवश्य ही संभावित है इसीसे क्रोध मान माया और लोभ इनके उदय से वैमानिक देवों तक के आठ कर्मों की निर्जरा होती है ऐसा कहा गया है। कषाय चार प्रकार का कहा गया है से यह प्रकारतारूप संख्या कृतयुग्मादिसंख्याविशेषरूप होता है इसी बात को कहने के लिये सूत्रकार प्रश्नोत्तर पूर्वक कहते हैं-'कह णं भंते ! गौतम ! "चउहि ठाणेहि" यार स्थानायी "तंजहा" भ3-"कोहेणं जाव लोभेणं" औषयी, मानथी मायाथी मन सोसथी अध, मान, माया, मने લેભના ભયથી કષાય ચાર પ્રકારના છે નરકાવાસમાં રહેલા નારક જીવેને અઠે કર્મ ઉદયમાં રહે છે. અને ઉદય થયેલ કર્મોની નિર્જરા અવશ્ય થાય છે. તે નારક છ કષાયથી ઉદય થનારા હોય છે. તેથી એમ માનવું જોઈએ કે કષાના ઉદયમાં કર્મની નિર્જરા જરૂર થાય છે. તેથી ક્રોધ, માન, માયા, લેભના ઉદયથી વિમાનિક દેવને આઠ કર્મોની નિર્જર થાય છે. તેમ કહેવામાં આવ્યું છે. કષાયે ચાર પ્રકારના કહ્યા છે. આ પ્રકારરૂપ સંખ્યા યુગ્માદિ સંખ્યાવિશેષરૂપ હોય છે એજ વાત બતાવવા સૂત્રકાર પ્રશ્નોત્તરના રૂપે કહે छ.--"कई णं भंते ! जुम्मा पण्णत्ता" शन युगम-राशिय मानी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy