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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सु०४ द्रव्यधर्मविशेषादिनिरूपणम् २४७ समणाणं निग्गंथाणं अभक्खया' ते खलु श्रमणानां निर्ग्रन्थानाम् अभक्ष्याः ते एते त्रिपकारका मित्रसरिसवया न साधूनां भक्ष्या इत्यर्थः 'तत्य णं जे ते धनसरिसक्या ते दुविहा पन्नत्ता' तत्र खलु ये ते धान्यसरिसवया धान्यसर्षपकाः ते द्विविधा:-द्विमकारकाः प्रज्ञप्ता:-कथिताः "तं जहा सत्थपरिणया य असस्थ. परिणया य' तद्यथा शस्त्रपरिणताश्च वयादिशस्त्रेण परिणता अचित्तभावं प्रापिता इति शस्त्रपरिणताः, अशस्त्रपरिणताश्च वयादिरूपशस्त्रविशेषेण नाचितीभूताः सचित्ता एव, ये शस्त्रपरिणतास्ते अचित्ताः, ये अशस्त्रपरिणतास्ते सचित्ता इत्यर्थः 'तत्थ णं जे ते असत्यपरिणया" तत्र खलु ये ते अशस्त्रपरिणताः बस्यादिना अचित्ततां न प्रापिताः धान्यसरिसवया धान्यसर्षपकाः 'ते णं सभणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया" ते खलु श्रमणानां निर्ग्रन्थानाम् अभक्ष्याः "तत्थ णं जे ते सत्यपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता' तत्र खलु ये ते शस्त्रपरिणता वयादिशस्त्रण जो धूलि में खेले होते हैं वे ऐसे ये ३ प्रकार के मित्र सरिसव श्रमणनिर्ग्रन्थों के द्वारा भक्ष्य नहीं कहे गये हैं, तथा तत्थर्ण जे ते धनसरिस. वया०' तथा जो धान्य सरिसव हैं वे शस्त्रपरिणत और अशस्त्र परिणत के भेद से दो प्रकार के कहे गये हैं जो 'धान्यसरिसव' अग्न्यादि शस्त्र के द्वारा अचित्तभाव को प्राप्त करवाये जाते हैं वे 'धान्य सरिसव' शस्त्रपरिणत हैं और जो बह्वयादिरूप शस्त्र के द्वारा अचित्तभाव को प्राप्त नहीं कराये गये होते हैं वे धान्यसरिसव अशस्त्रपरिणत हैं। इनमें जो शस्त्रपरिणत हैं वे अचित्त और जो अशस्त्र परिणत हैं वे सचित्त होते हैं। इनमें जो 'असत्थपरिणया' अशस्त्र परिणत सचित्त धान्यसरिसव हैं वे 'समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया' श्रमण निम्रन्थो द्वारा अभक्ष्य हैं तथा जो 'सस्थपरिणया०' शस्त्रपरिणत भित्री 'सरिसव' पथा अन्य ४२१ामा सात ते श्रम नियन्याने लक्ष्य नथी. 'तत्थ णं जे ते धन्नसरिसवया०' मारे धान्य सरिस छे, ते શસ્ત્ર પરિણત અને અશસ્ત્ર પરિણત એ ભેદથી બે પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે, જે “ધાન્ય સરિસવ” અન્યાદિ શસ્ત્રથી અચિત્તપણાને પ્રાપ્ત કરાવાય છે. તે ધાન્ય સરિસવ શસ્ત્ર પરિણત છે. અને જે અગ્નિ વિગેરે શસ્ત્રથી અચિત્તભાવ પ્રાપ્ત નથી કરાવાયા તે ધાન્યસરિસવ અશસ્ત્ર પરિણત કહેવાય છે. તેમાં જે શસ્ત્રપરિણત છે. તે અચિત છે, અને જે અશસ્ત્ર પરિણત છે, તે सयित्त डाय छे, तेथी ते 'असत्थपरिणया' अशर परिणत धान्य सरिस छ, 'समणाणं णिग्गंथाण अभखया' श्रम नियन्याने ससक्ष्य छे. तथा २ 'सत्थ परिणया०' शस्त्र परिणत अयित्त धान्य सरिस छ, ते श्रमण શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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