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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू०१ भव्यद्रव्यदेवरूपानगारनिरूपणम् २१५ आलाप एतदेव उभयोवैलक्षण्यम् । 'जहा पंचमसए' इत्यादिना यत् सूचितं तदिदम् 'अणगारे णं भंते ! भावियप्पा अगणिकायस्स मज्झं मज्झेणं वीईवएज्जा हता वीईवएज्जा से णं तत्थ किं झियाएज्जा णो इणढे समढे णो खलु तत्थ सत्थं कमइ' इत्यादि । अनगारः खलु भदन्त ! भावितात्मा अग्निकायस्य मध्यं मध्येन व्यतिव्रजेत् हंत व्यतिव्रजेत् स खलु तत्र किं ध्यापयेत् नायमर्थः समर्थः नो खलु तत्र शस्त्रं क्रामतीत्यादि ॥० १॥ उद्देश में परमाणुपुद्गल सम्बंधी वक्तव्यता यावत् उदकावर्त में वह प्रवेश कर सकता है क्योंकि उस पर शस्त्र अपना कुछ प्रभाव नहीं दिखा सकता है। यहां तक की वह सब वक्तव्यता यहां पर कह लेनी चाहिये। पंचमशतक के सातवें उद्देशे में जो आलाप कहा गया है वह परमाणु पुद्गल को लेकर कहा है सो वही आलाप यहां भावितात्मा अनगार को घटित करके कह लेना चाहिये जैसे-'अणगारे णं भंते ! भावियप्पा अगणिकायस्स मज्झं मज्झेणं वीइवएज्जा? हंता वीइवएज्जा से णं तत्थ झि याएज्जा ? जो इणठे समढे णो खलु तत्थ सत्थं कमई' इत्यादि इसका अर्थ स्पष्ट है । तात्पर्य गौतम के पूछने का ऐसा है कि-हे भदन्त ! भावितारमा अनगार क्या अग्नि के बीच में होकर निकल सकता है ? उत्तर में प्रभु ने कहा हां गौतम ! निकल सकता है वह अग्नि के बीच में से होकर निकलने पर भी जो उस से जलता नहीं है उसका कारण उस पर शस्त्र अपना कुछ भी प्रभाव नहीं दिखा सकते हैं। यह है ।सूत्र १॥ छे. ते यावत् आपतमा--Mail यामा त प्रवेश 30 श छ, म કે તેના પર શસ્ત્ર પિતાને કંઈ જ પ્રભાવ બતાવી શકતું નથી. અહિ સુધીનું તે તમામ કથન અહિંયાં સમજી લેવું પાંચમા શતકના સાતમા ઉદ્દેશામાં જે જે આલાપકો કહ્યા છે તે પરમાણુના પુદ્ગલને ઉદેશીને કહેવામાં આવેલ છે. તેજ આલાપક અહિયાં ભાવિતાત્મા અનગારને ઘટાવીને કહેવા. જેમ કે -"अणगारे णं भंते ! भावियप्पा अगणिकायस्स मज्झ मझेणं वीइवएज्जा हता वीइवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा, णो इणटूठे समठे णो खलु तत्थ सत्थं कमइ” छत्याहिमडियां गौतम स्वाभीमेश ५७युछ है--8 लगवन ભાવિતાત્મા અનગાર શું અગ્નિની વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે--હા ગૌતમ! તેવી રીતે ભાવિતાત્મા અનગા૨ અગ્નિની પાર નીકળી શકે છે. તે અગ્નિની વચ્ચે થઈને નીકળવા છતાં પણ તે અગ્નિથી બળતું નથી તેનું કારણ તેના પર શસ્ત્ર પોતાને કોઈ જ પ્રભાવ બતાવી શકતું નથી તે જ છે. એ સૂ. ૧ / શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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