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________________ भगवतील यथाऽन्धः । एते चत्वारो भङ्गा अनन्तपदेशिकस्कन्धविषये इति । छद्मस्थाधिकारात् छमस्थविशेषणभूताधोवधिकपरमाधोवधिकसूत्रे आह आहोवहिए' इत्यादि । 'आहोवहिए णं भंते' आधोवधिक:- अधोवधिज्ञानी खलु भदन्त ! 'मणुस्से मनुष्याः 'परमाणुपोग्गलं.' परमाणुपुद्गलं जानाति पश्यति अथवा न जानाति न पश्यतीति प्रश्नः, भगवानाह-'जहा' इत्यादि । 'जहा छउमस्थे एवं आहोहिए वि' यथा छद्मस्थ एवमाधोवधिकोऽधोवधिज्ञानी अपि अस्त्येकको जानाति न पश्यति अस्येकको न जानाति न पश्यतीत्यर्थः ‘एवं जाव अणंतपएसियं' एवं यावत् अनन्तमदेशिकम् अत्र यावत्पदेन द्विपदेशिकत्रिचतुपञ्चषटसप्ताष्टनवदशसंख्येयप्रदेशिकस्कन्धानां ग्रहणं भवति तथा च यथा अवधिज्ञानिनां देखता है ऐसा यह चौथा भङ्ग है जैसे अन्धा मनुष्य ये चार भङ्ग अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध के विषय में है। ____ अवगौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं । 'आहोवहिए' इत्यादि हे भदन्त ! जो छअस्थ मनुष्य अधअवधिज्ञानी होता है वह परमाणुपुद्गल को जानता और देखता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जहा' इत्यादि हेगौतम! जैसा उत्तर छद्मस्थ के सम्बन्ध में दिया गया है। इसी प्रकार का उत्तर यहां पर भी जानना चाहिये । अर्थात् कोई एक अधोवधिज्ञानी परमाणुपुद्गल को जानता तो है पर उसे देखता नहीं है तथा कोई एक अधो. वधिज्ञानी परमाणुपुद्गल को न जानता है और न देखता है । 'एवं जाव अणंतएसियं' इसी प्रकार से द्विप्रदेशिक स्कन्ध, त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, चतुः प्रदेशिक स्कन्ध, पंचप्रदेशिक स्कन्ध, छह प्रदेशिक स्कन्ध, सप्तप्र આ પ્રમાણેના ચાર ભાગે અનંત પ્રદેશીક સ્કંધના વિષયમાં છે. डवे गौतम २वामी प्रसने से पूछे छे : "आहोवहिए" त्यादि ભગવદ્ જે છસ્થ માણસ અવધિજ્ઞાન વાળ હેય છે. તે પરમાણુ પુદ્ગલને ये छ? मन छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -"जहा" ઈત્યાદિ હે ગૌતમ! છઘના સંબંધમાં જેવી રીતે કથન કર્યું છે તે જ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં પણ સમજી લેવું અર્થાત્ કોઈ એક આધેવધિજ્ઞાની પરમાણુ યુદ્ધને જાણે તે છે, પરંતુ તેને દેખતા નથી. તથા કોઈ એક अद्यावधिज्ञानी ५२मा पुरसने तता नयी मने मत। ५५५ नथी. “एवं जाव अणंतपएसिय" मा प्रभार से प्रदेशवार २४५, प्रशवाणा સ્કંધ ચાર પ્રદેશવાળા સકંધ પાંચ પ્રદેશવાળા કંધ છ પ્રદેશવાળા સ્કંધ સાત પ્રદેશવાળા સ્કંધ, આઠ પ્રદેશવાળા સ્કંધ, નવ પ્રદેશવાળા સ્કંધ, દસ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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