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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०१८ उ०८ सू०२ गमनमाश्रित्य परतीर्थिक्रमतनिरूपणम् १७५ हेणं जाव एगंतपंड़िया वि भवामो' इस सूत्र पाठ द्वारा सूत्रकारने स्पष्ट की है । तात्पर्य कहने का केवल ऐसा ही है कि प्रयोजन एवं उपयोग के बिना हम लोग चलते फिरते नहीं हैं । और इसी कारण से जब हम लोगों को चलना फिरना पडता है । तब उपयोग पूर्वक मार्ग को बार २ देखते हुए ही हम लोग चलते हैं । अतः हम लोग असंयत एकान्तवाल नहीं हैं । किन्तु संयत और एकान्तपण्डिन ही हैं। किन्तु जब हमलोग आपकी इस प्रवृत्ति पर विचार करते हैं तो 'तुज्झे णं अज्जो ! अप्पणा चेव निविहं तिविहेणं असंजया एगंतवाला यावि 'भवह' उल्टे तुम लोग ही त्रिविध त्रिविध से असंगत एवं एकान्तबाल प्रतीत होते हो विरति विहीन हो 'तए णं ते अन्नउस्थिया भगवं गोयमं एवं वयासी' गौतम का इस प्रकार का कथन सुनकर उन अन्ययूथिकोंने उन भगवान् गौतम से ऐसा कहा - 'केणं कारणेणं अज्जो ! तिविहं तिविहेणं जाव भवामो' यहां यावत्पद से 'असंयताः एकान्तबालाश्चापि ' इन पदों का ग्रहण हुआ है । तथा च हे गौतम! हम लोग किस कारण से त्रिविध त्रिविध से असंख्यात और एकान्तबाल बनते हैं ? 'तए णं भगवं गोयमे' तब भगवान गौतम ने 'ते अन्नउत्थिए एवं वयासी' च्चमाणा जाव अणुहवेमाणा तिविहं तिविहेणं जात्र एगंतपंडिया वि भवामो" આ સૂત્રપાઠથી સૂત્રકારે સ્પષ્ટ કરી છે. કહેવાનુ તાપ એ છે કે—પ્રયાજન અને ઉપયેગ શિવાય અમે ચાલતા ફરતા નથી. અને અમારે જ્યારે ચાલવુડ ફરવુ' પડે છે ત્યારે ઉપયેગ પૂર્વક માને વારવાર જોઈ જોઈ ને જ અમા ચાલીએ છીએ. તેથી અમે અસયત એકાન્ત માલ નથી. પરંતુ સયત અને એકાન્ત પડિંત જ છીએ. પરંતુ જ્યારે આપની પ્રવૃત્તિ પર सभी विचार उरी छोयो त्यारे "तुज्झे णं अज्जो ! अप्पणाचेव तिविहं तिविहेणं असंजया एगतबाला यावि भवह" न्याय ४२ मने त्रषु ચૈાગથી અસયત અને એકાન્તમાલ લાગેા છે. અર્થાત્ આપ વિરતિરહિત ४. “तए णं ते अण्णउत्थिया भरावं गोयमं एवं वयासी” गौतम स्वाभीनु मा કથન સાંભળીને તે અન્યયૂથિકાએ ભગવાન ગૌતમસ્વામીને આ પ્રમાણે કહ્યું. "केणं कारणं अज्जो ! तिविदं तिविहेणं जाव भवामो" मडियां यावत्यथी "असंयताः एकान्तबालाश्चापि " मे पहोना संग्रह थयो छे तेनेो अर्थ मा પ્રમાણે છે કે-હે ગૌતમ અમેાને શા કારણથી ત્રણ કરણ અને ત્રણ યાગથી અસ યત भने अन्त मास । छ ? " तरणं भगव गोयमे" तेथे पूर्वेति रीते डेवाथी लगवान् गौतम स्वाभीये "ते अन्नउथिए एवं वयासी” ते अन्य શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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