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________________ भगवतीस्त्रे भदन्त ! कतिविधः उपधिः प्रज्ञप्तः गौतम ! त्रिविधः सचित्तो अचित्तो मिश्रश्च, इति तत्र नारकाणां सचित्तः उपधिः शरीरम् अचित्तोपधिः उत्पत्तिस्थानम् मिश्रस्तु शरीरमेवोच्छ्वासादिपुद्गलयुक्तम् तेषां सचेतनाऽचेतनत्वे मिश्रत्वस्य विवक्षणादिति । 'एवं निरवसेसं जाच वेमाणियाणं' एवं निरवशेषं यावद् वैमानिकानाम् , नैरयिकादाराम्य वैमानिकपर्यन्तं चतुर्विंशतिदण्डकेषु पूर्वोक्तस्य त्रिपकारस्यापि उपधेः सत्त्वं ज्ञेयम् इति । उपधि प्रदर्य परिग्रहं दर्शयन्नाह-'कइविहे ' इत्यादि । 'कइविहे गं भंते ! परिग्गहे पन्नत्ते' कतिविधः खल भदन्त ! परिग्रहः प्रज्ञप्तः, भग वानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'तिविहे परिगहे पन्नत्ते' त्रिविधः परिग्रहः प्रज्ञप्तः ‘त जहा' तयथा 'कम्मपरिग्गहे सरीरपरिग्गहे' बाहिरसचित्ते, अचित्ते, मीसए' अर्थ स्पष्ट है, नारक जीवों के सचित्त उपधि शरीर है । अचित्त उपधि उनकी उत्पत्ति का स्थान है और मिश्र उपधि उच्छ्वासनिश्वास आदि पुद्गलयुक्त शरीर ही है। इनमें मिश्रता सचेतन अचेतनरूप होने से है। ‘एवं निरवसे सं जाव वेमाणियाणं' नैरपिकों से लेकर यावत् वैमानिक पर्यन्त २४ दण्डकों में पूर्वोक्त तीनों प्रकार की उपधि का सत्व रहता है ऐसा जानना चाहिये । अब परिग्रह कितने प्रकार का है । इस विषय में प्रश्न करते हुए गौतम! प्रभु से कहते हैं-'काविहे णं भंते ! परिग्गहे पन्नत्ते' हे भदन्त ! परिग्रह कितने प्रकार का कहा गया है। 'गोयमा! तिविहे परिग्गहे पन्नत्ते' हे गौतम ! परिग्रह ३ प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा-कम्मपरिग्गहे.' वह पन्नत्ते गोयमा! तिविहे तं जहा-सचित्ते, अचित्ते, मीसए" भगवन नाछीय જીને કેટલી ઉપધિ કહેવામાં આવી છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ! તેઓને સચિત્ત, અચિત્ત, અને મિશ્ર એ પ્રમાણે ત્રણ ઉપધિ કહેવામાં આવી છે. નારક જીવોને સચિત્ત ઉપધિ શરીર છે. અચિત્ત ઉપધિ તેનું ઉત્પત્તિ સ્થાન છે. અને મિશ્ર ઉપાધિ ઉપવાસ વિગેરે પગલવાળું શરીર જ છે, તેમાં મિશ્રપણુ સચેતન અને અચેતન રૂપ पाथी छे. "एवं निरवसेसं जाव वेमाणियाण०" नैयिायी मामीन यावत् વૈમાનિકે સુધી ૨૪ ચોવીસ દંડકે માં પૂર્વોક્ત ત્રણે ઉપધિ વિદ્યમાન રહે छ. तम समान वे गौतम स्वामी पनि अना विषयमा पूछे छे ?-"कइ किरण भंते ! परिग्गहे पन्नत्ते" मगवन् परियडमा प्रान। वाम साव्या छ ? तन उत्तरमा प्रभु ४३ छे -"गोयमा! तिविहे परिग्गहे पन्नते" है गौतम! परिक्षण प्रा२ना अपामा माया छ. "तं जहा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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