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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ० ७ सू० १ केवलीनां यक्षावेशनिरूपणम् ८९ यक्षावेशेनाविष्टः सन यक्षो देवविशेषः तस्यावेशेन अन्तः प्रवेशेनेत्यर्थः 'आह. च्च दो भासाओ भासई' आहत्य द्वे भाषे भाषते आहत्य कदाचिदित्यर्थः के द्वे भाषे तत्राह-'तं जहा' इत्यादि । 'तं जहा' तद्यथा 'मोसं वा सच्चामोसं वा' मृषां वा सत्यामृषां वा, यक्षावेशवशात् केली असत्यमेव वदति अथवा सत्यामृषा सत्यरूपां मृषारूपां चेत्यर्थः मिश्रभाषां वदतीति ‘से कहमेयं भंते ! एवं' तत् कथमेतद् एवम् हे भदन्त ! एवं परैरुच्यमानं किम् एतत् एवं संभवेत् ? इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जण्णं ते अन्नउत्थिया जाव एवमासु' यत् खलु ते अन्ययूथिकाः यावत् ये ते एकमाहुस्ते मिथ्या एकमाहुः, अत्र यावत्पदेन संपूर्णस्य प्रश्नाक्यस्य अनुवादः कर्त्तव्यः 'अहं पुण गोयहे भदन्त ! वे ऐसा कहते हैं कि जब केवली यक्ष के आवेश से आविष्ट-गृहीत हो जाता है अर्थात् केवली के भीतर जब यक्ष देवविशेष लीन हो जाता है । केवली को जब भूत लग जाता है-तब उसके आवेश से वे 'आहच्च०' कदाचित् दो भाषाओं को बोलने लग जाते हैं एक भाषा उनमें होती है मृषा, और दूसरी होती है सत्यमृषा यद्यपि केवली सत्य ही बोलते हैं परन्तु यक्षावेश से वे उस समय या तो असत्य भाषा को बोलते हैं या सत्य से मिली मृषो भाषा को मिश्रभाषा को बोलते हैं। 'से कह ' सो हे भदन्त ! उन लोगों का ऐसा कथन कहां तक ठीक है। क्या ऐसा हो सकता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं--'गोयमा ! जण्णं ते अन्नउत्थि०' हे गौतम जो उन्होंने ऐसा कहा है सो वह बिलकुल मिथ्या कहा है। यहां यावत् पद से समस्त प्रश्नवाक्य का अनुवाद कर लेना चाहिये । 'अहं पुण' मैं तो તે એવું કહે છે કે-જયારે કેવલી ભગવાન યક્ષના આવેશથી આવેશવાળા થાય છે. અર્થાત્ કેવલીની અંદર જ્યારે યક્ષ દેવ વિશેષ પ્રવેશ કરે છે. એટલે Bी न्यारे भूत ५ छ, त्यारे तेते। ४ मावेशथी "आहत्य" કઈવાર બે ભાષા બોલે છે. એક ભાષા તો તેઓમાં મૃષા-અસત્યભાષા હોય છે અને બીજી સત્ય મૃષાભાષા હોય છે. જો કે કેવલી ભગવાન સત્ય જ બોલે છે. પરંતુ યક્ષના આવેશથી તે સમયે તેઓ અસત્ય ભાષા બોલે छ मया तो सत्यथा भनेसी भृषामाषा मिश्रभाषा बोले छे. “से कहमेवं भंते ! तो मापन तानु प्रभारीनं ४थन शु सत्य ४ छ ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -“गोयमा! जणं ते अन्नउत्थिया०" 3 ગૌતમ! તે અન્ય મતવાદીઓએ એવું જે કહ્યું છે તે બિલકુલ મિથ્યાमसत्य ह्यु छ. महिं यावत्पथी स पूरा प्रश्न पाय सभ9 al. “अहं. भ० १२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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