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________________ ७४ भगवती सूत्रे एकतः - अपरभागे संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ अट्ठपरमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए, एगयओ संखेज्जपए सिए खंधे भवइ' अथवा एकत: - एकभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अन्यभागे संख्येयमदेशिकः स्कन्धो भवति, 'एएणं कमेणं एकेको पूरेपव्वी जाव' एतेन उपर्युक्तेन अभिलापक्रमेण एकेकः अभिलापः पूरयितव्यः- आदाय परिपूरणीयः यावत्-एवतः अष्टौ परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकतः त्रिचतुःपञ्चषट्सप्ताष्टनयमदेशिकश्च स्कन्धो भवति, एकतः संख्ये यम देशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एगयओ दसपएसिए खंधे एमओ नव संखेज्जप एसिया खंधा भवंति' अथवा एकत: - एकभागे दशप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः - अपरभागे नव संख्येयप्रदेशिकाः स्कन्धा भवन्ति, 'अहवा विभाग में एक संख्पात प्रदेशी स्कन्ध होता है-' अहवा एगयओ अट्ठ परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए एगयओ संखेज्जपएसिए खंधे भवइ ' अथवा एक भाग में आठ पुद्गलपरमाणु होते हैं, अपरभाग में एक विदेशी स्कन्ध होता है, और अन्यभाग में एक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है । 'एएणं कमेणं एक्केको पूरेयच्वो जाव' इस क्रम से एक एक अभिलाप पूरित करना चाहिये-यावत् एकभाग में आठ परमाणुपुद्गल होते हैं, अपरभाग में तीन, चार, पांच छह सात आठ और नौ प्रदेशी स्कन्ध होता है, और अन्यभाग में संख्यात प्रदेशिक एक स्कन्ध होता है-' अहवा एगयओ दसपएसिए खंधे, एगयओ नव संखेज्ज परसिया खंधा भवंति' अथवा एकभाग में एक दशप्रदेशिक स्कन्ध होता है, और अपरभाग में नौ संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध होते हैं। એક સ્ક ́ધ રૂપ દસમેા વિભાગ થાય છે. अहवा एगयओ अट्ठ परमाणुपोगला, एगयओ दुप्पएसिए, एगयओ संखेज्जपएसिए खंबे भवइ " અથવા એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા આઠ વિભાગે, દ્વિપ્રદેશિક એક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ અને સંખ્યાત પ્રદેશી કોંધ રૂપ એક વિભાગ થાય છે. ડ एपण कमेण एक्केको पूरेयव्वो जाव " आ उभे माडीना विकल्यो पशु मनावी शाय છે. દરેક વિકલ્પના નવમાં વિભાગમાં એક એક પ્રદેશની વૃદ્ધિ કરીને બાકીના વિકલ્પે બનાવી શકાય છે. જેમ કે...અથવા એક એક પરમાણુ પુદ્ગલવાળા आठ विभाग, त्रशु-यार-पांच-छ- सात-आठ अथवा नव अहेशोवाजा सुध રૂપ નવમે વિભાગ અને સખ્યાત પ્રદેશી સ્ક'ધ રૂપ દસમે વિભાગ થાય છે. 66 अहचा - एगयओ दसपए लिए खंधे, एगयओ नव संखेज्जपरसिया खंधा भवंति " અથવા દસપ્રદેશિક કધ રૂપ એક વિભાગ થાય છે અને સખ્યાત પ્રદેશી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦ -- 66
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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