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________________ ફ્ भगवती सूत्रे स्थाने एकोsर्मास्तिकाय प्रदेशोऽवगाढो भवति, धर्मास्तिकाय प्रदेशस्थानेऽधर्मास्तिका प्रदेशस्य विद्यमानत्वात् । गौतमः पृच्छति' केवइया आगासत्थिकायप्पएसा ओगाढा ?' हे मदन्त ! एकधर्मास्विकाय प्रदेशावगाहस्थाने कियन्तआकाशास्ति काय प्रदेशाः अत्रगाढा भवन्ति ? भगवानाह - ' एको' हे गौतम ! तत्र एक एव आकाशास्तिकाय प्रदेशः अवगाढो भवति, गौतमः पृच्छति - ' केवड़ - या कापसा ओगाढा ? ' एकः धर्मास्तिकायम देशावगाहस्थाने कियन्तो जीवास्तिका प्रदेशा अवगाढा भवन्ति ? भगवानाह ' अनंता' हे गौतम ! तत्र पर धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है - वहां पर एक धर्मास्तिकायप्रदेश की अवगाहना स्थान पर - अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ होता है- क्योंकि धर्मास्तिकाय प्रदेश के स्थान पर अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश विद्यमान रहता है। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' केवहया आगासत्थिका परसा ओगाढा' हे भदन्त ! एक धर्मास्तिकाय प्रदेश के अवगाहना स्थान में आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-' एको ' हे गौतम! वहां पर एक ही आकाशास्तिकायप्रदेश अवगाढ होता है । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'केवझ्या जीवस्थिकायप्पएसा ओगाढा' हे भदन्त ! एक धर्मास्तिकाय प्रदेशावगाहस्थान में जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैंअनंता' हे गौतम! वहां जीवास्तिकाय के अनन्तप्रदेश अवगाढ होते हैं। સ્તિકાયના એક પ્રદેશ અવગાહિત ઢાય છે, ત્યાં એક ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશની અવગાહના સ્થાન પર અધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશ અવગાહિત હોય છે, કારણ કે ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશના સ્થાન પર અધર્માસ્તિકાયના એક પ્રદેશ વિદ્યમાન રહે છે. गौतम स्वाभीने प्रश्न - " केवइया आगासत्थिकायप्पएसा ओगाढ | ? " ભગવન્! એક ધર્માસ્તિકાયપ્રદેશના અવગાહના સ્થાનમાં આકાશાસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશે। અવગાહિત હાય છે ? उत्तर- " एक्को " ते स्थान पर मामशास्तिमायनो मेड ४ अहेश અવગાહિત હાય છે. गौतम स्वामीनी प्रश्न - " केवइया जीवत्थिकायप्पएसा ओगाढा ?" डे ભગવન્ ! એક ધર્માસ્તિકાય પ્રદેશના અવગાહના સ્થાનમાં જીવાસ્તિકાયના કેટલા પ્રદેશે! અવગાહિત હાય છે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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