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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० १२ उ०४ ० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ४३ स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवः' अथवा एकतः-एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकता-अपरमागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, भवति, एकत:अन्यभागे त्रिप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, ' अहवा एगयो दो परमाणुपोग्गला, एगयो तिनि दुप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा एकत:-एकभागे द्वौ परमाणु. पुद्गलौ भवतः, एकतः-अपरभागे त्रयो द्विप्रदेशिकाः स्कन्धाः भवन्ति। 'छहा कज्जमाणे एगयओ पंच परमाणुपोग्गला, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवइ' अष्टप्रदेशिकः स्कन्धः पोढा क्रियमाणः एकतः- एकभागे पश्च परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकत:-अपरभागे त्रिपदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ चत्तारि प्रदेशिक स्कन्ध होता है-'अहवा-एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एग. यओ दुप्पएसिए, एगयओं तिप्पएसिए खंधे भवइ, एक भाग में तीन परमाणुपुगदुलरूप भाग होते हैं,और एक भाग में द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता हैं और अन्य भाग में त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है। 'अहवा-'एग. यओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया खंधा भवंति, अथवा एक भाग में दो परमाणु पुगदल होते हैं, दूसरे भाग में तीन द्विप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं । 'छहा कज्जमाणे एगयओ पंच परमाणुपोग्गला, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवई' यह अष्ट प्रदेशिक स्कन्ध जब छह विभग में विभक्त किया जाता है-तब एक भाग में पांच परमाणुपुरल होते हैं और एक विभाग में त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है। 'अहवा एग. આવે છે, ત્યારે એક એક પરમાણુ પુલવાળા ચાર વિભાગ અને ચાર પ્રાદેશિક એક કપ રૂપ એક વિભાગ, આ પ્રકારે પાંચ વિભાગ થાય છે. " अहवा-एगयओ तिन्नि परमाणुपागला, एगयओ दुप्पएसिए, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भवइ" अथवा मे से ५२मा पुरसवाणा १ विलागी, એક દ્વિપ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ અને ત્રિપ્રદેશિક એક કપ રૂપ विला, प्रारे पाय विना थाय छे. “ अहवा-एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया खंधा भवंति" ५441 मे से પરમાણુ પુદ્ગલવાળા બે વિભાગો અને ત્રણ ત્રિપદેશિક સ્કંધ રૂપ ત્રણ વિભાગે याय छे. " छहा कन्जमाणे एग यओ पंच परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पएसिए वंधे भवइ" मटेशि४ २४ घना न्यारे ७ विलास ३२यामा भाव छ, ત્યારે એક એક પુલ પરમાણુવાળા પાંચ વિભાગ અને ત્રિપ્રદેશિક સકંધ ३५ मे विमा याय छे. “ अहया एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एग. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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