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________________ - ४७४ भगवतीसूत्रे विन्नि वा, उक्को सेणं संखेज्ना नोइंदियोवउत्ता उव्वदंति' जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया नो इन्द्रियोपयुक्ता मनोयुक्ता उद्वर्तन्ते, 'मणजोगी न उबटुंति एवं बहजोगी वि' मनोयोमिन स्ततो नोद्वर्तन्ते, एवं-तथैव वचोयोगिनोऽपि ततो नो द्वतन्ते, 'जहण्णेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेना काय जोगी उव्वति, ‘एवं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता' जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येयाः काययोगिनः कार्मणकाययोगिन उद्वर्तन्ते, एवं-तथैव साकारोपयुक्ताः, अनाकारोपयुक्ताः जघन्येन एको वा, द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया स्तत उद्वर्तन्ते, इति भावः ॥सू० २॥ मूलम्-इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढबीए, तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नेरइएसु केवइया नेरदोवा तिनिवा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा नो इंदियोवउत्ता उव्वटुंति' जघन्य से एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात नोइन्द्रियोपयुक्त-मनोयुक्त उद्वर्तना करते हैं 'मणजोगी, न उव्वदंति, एवं वइजोगी वि' मनोयोगी उद्वर्तना नहीं करते हैं-वचनयोगी भी वहां से उछतैना नहीं करते हैं । 'जहण्णेणं एको वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा कायजोगी उव्वदंति, एवं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता' जघन्य से एक, दो, या तीन और उत्कृष्ट से संख्यात काययोगीकार्मणकाययोगी-उछलना करते हैं इसी प्रकार से साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जघन्य से एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात वहां से उद्वर्तना करते हैं ।सू०२॥ or Gaत्तनाना समाप ४ह्यो छे. “जहण्णेण एक्कोवा, दोवा, तिन्निवा, उक्कोसेण संखज्जा वा नोइंदियोवउत्ता उव्वदंति " समयमा माछामा ઓછા એક, બે અથવા ત્રણ અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત નો ઈપિયુક્ત (भनायुश्त) ना२। त्यांथी उत्तनो रे छ " मणजोगी न उव्वटुंति, एवं वइजोगी वि" मनायी मने क्यनयी ना२। द्वतन। ४२ता नथी. " जहण्णेणं एक्कोवा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं संख्रिज्जा कायजोगी उठवटुंति" ઓછામાં ઓછા એક, બે અથવા ત્રણ અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત यया ना२। त्यांथी द्वत्ता ४२ छ. " एव सागारोवउत्ता अणगारोव उत्ता" એજ પ્રમાણે સાકારોપયુત અને અનાકાપયુકત નારકે પણ ત્યાંથી ઓછામાં ઓછા એક, બે અથવા ત્રણ અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાત ઉદ્ધત્તના કરે છે. સૂરા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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