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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू०३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४३५ पर्यवः तदा चतुष्पदेशिकः स्कन्धः आत्मा च सदरूपः नोआत्मा च असद्पो भवति ? इत्यादि पूर्वोक्तरीत्या चतुर्भङ्गी वक्तव्या। __तथाहि-एकोऽयं पूर्वोक्तो भङ्गः१, शेषमात्रयं यथा-देसे आइट्टे सम्भावपज्जये देसा आइट्ठा असम्भावपज्जवा२, देसाआइट्ठा समावपज्जवा देसे आइटे असम्भाव. पज्जवे३, देसा आहा सम्भावपज्जवा देसा आइट्ठा असम्भावपज्जवा ४४३-७। 'सम्भावपज्जवेणं तदुभयेण य चउभंगो, असम्भावेणं तदुभयेण य चउभंगो' सद्भावपर्यवेण, तदुभयेन च सदभावपर्यवासदभावपर्यवेण चतुर्भङ्गो वक्तव्या, तथाहि-'देसे आइढे सम्भावपज्जवे देसे आइढे तदुभयपज्जवे आयाइय नो आयाइय १, देसे आइढे सम्भावपज्जवे देसा आइट्ठा तदुभयपज्जवा आयाओ य नो आयाओ य२, देसा आइट्टा सब्भावपज्जवा देसे आइडे तदुभयपज्जवे आयाइय और असद्रूप होता है इत्यादि पूर्वोक्त रीति से यहां चर्तुभंगी कहनी चाहिये 'देसे आइहे सम्भावपज्जवे देसे आइट्टे असम्भावपज्जवे' एक तो यह भंग पहिले प्रकट ही कर दिया गया है-१ (४) शेष ३ भंग इस प्रकार हैं-'देसे आइट्टे सम्भावपज्जवे, देसा आइट्टा असम्भावपज्जवार, (६) देसा आइहा सम्भावपज्जवे देसे आइहे असन्माषपजवे ३ (६) देसा आइहा सम्भावपज्जवा देसा आइट्ठा असम्भावपज्जवा ४ (७) इस प्रकार से चार ये और पूर्व के तीन भंग, ये-सब मिलकर ७ सात भंग हो जाते हैं। 'सम्भावपज्जवेण तदुभएण य चउभंगो, असभावेणं तदुभयेग य च उभंगो' सद्भावपर्याय को लेकर और तदुभय सद्भाव असद्भाव पर्याय को लेकर चार भंग होते हैं, जो इस प्रकार से हैं-'देसे आइहे सम्भावपज्जवे, देसे आइट्टा तदुभयपज्जवे आयाइय ना आयाइय १, देसे आइडे सम्भावपज्जवे, देसा आइटा तदुभयपज्जया હોય છે અને (૨) અસરૂપ હોય છે ઈત્યાદિ ચાર ભાંગા પૂર્વોકત પદ્ધતિ अनुसार उ नसे. "देसे आइटे सम्भावपज्जवे, देसे आइद्रे असम्भावपज्जवे" । मे लगे त पडेला प्रगट या छे. मानay in नीय प्रमाणे सम१-" देसे आइटु सम्भावपज्जवे, देसा आइट्ठा असम्भावपज्जवार, देसा आइट्ठा सम्भावपज्जवा, देसे आइडे असब्भावपज्जवे३, देसा आइदा सम्भावपज्जवा, देसा आइदा असब्भावपज्जवा४" मा ४२ना मा यार Min मने पडसानia Hinभजीन साता यायले. “सम्भावपज्जवेणं तदुभएण य चउभंगो, असम्भावेणं तदुभयेण य चउभंगो" सहला पर्यायनी અપેક્ષાએ તથા સદૂભાવ અસદુભાવ પર્યાયની અપેક્ષાએ ચાર ભાંગા થાય છે. ते यार Hinनीय प्रमाणे छ-" देसे आइठे सम्भावपज्जवे, देसा आइद्रा सदुभयपज्जया आयाइय नो आयाइय१, देसे आइढे सम्भावपज्जवे, देसा आइस શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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