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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका २० १२ उ० ४ सू०१ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् २७ भवति, से भिज्जमाणे दुहावि, तिहावि, चउहावि कज्जइ' स चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भिधमानः पृथग भवन् द्विधा पि, त्रिधा पि, चतुर्धा पि क्रियते-भवति, तत्र 'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवइ' द्विधा क्रिय. माणः, एकत:-एकमागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकता-अपरभागे त्रिपदेशिक: स्कन्धो भवति, 'अहवा दो दुप्पएसिया खंधा भवंति' अहवा चतुष्पदेशिकः स्कन्धो द्विधाक्रियमाणः द्वौ द्विप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयो दुप्पएसिए खंधे भवइ' चतुष्पदेशिकः स्कन्धः विधा होता है । अर्थात्-चार पुद्गल परमाणुओं के मिलाप से जो स्कन्ध उत्पन्न होता है उसका नाम चतुष्पदेशिक स्कन्ध है-' से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि चउहावि कज्जइ' यह चतुष्प्रदेशिक स्कंध जप अपनी इस स्कन्ध अवस्था में पृथक् होने लगता है-तब इसके दो टुकड़े भी हो सकते हैं, तीन टुकड़े भी हो सकते हैं और चार टुकड़े भी हो सकते हैं-'दुहा कज्जमाणे एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवइ ' जब इसके दो टुकड़े होते हैं तो वे इस प्रकार से होते हैंएक भाग में एक परमाणुपुद्गल होता है और दूसरे भाग में त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है । 'अहवा-दो दुप्पएसिया, खंधा भवंति' अथवा दो विभाग दो दो प्रदेशों के भी होते हैं। अर्थात्-एक विभाग द्विप्रदेशी स्कन्धका और दूसरा विभाग भी द्विप्रदेशी स्कन्ध का हो जाता है। 'तिहा कज्जमाणे एगय भो दो परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए ' એટલે કે ચાર પુકલપરમાણુઓના સંયોગથી જે કંધ બને છે તેનું नाम यतु प्रशि: २४५ थाय छे. " से भिजमाणे दुहा वि, तिहावि, चउहा वि कज्जइ" या३ मा यतुशि २४ तानी मा अस्थाना त्याग કરીને વિભક્ત થઈ જાય છે, ત્યારે તેના બે વિભાગ પણ પડી શકે છે, ત્રણ विमा ५९५ ५डी ॐ छ भने या२ विमा ५५ ५ । . “ दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिप्पएसिए खंधे भव" यारे તેના બે વિભાગ થાય છે, ત્યારે તેના એક ભાગમાં એક પરમાણુપુદ્ગલ હોય छ भने भी लाभ से निशि २४५ हाय छे. “अहवा-दोपएसिया खंधा भवंति" अथवा विशि : २७५ ३५ मे विमा ५५ ५६ छ. એટલે કે એક વિભાગ ઢિપ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ અને બીજો વિભાગ પણ પ્રિદેશિક રકધરૂપ જ હોય છે. “तिहा कन्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ " न्यारे यतुष्प्रशि: २४धन १९ विमानमi Ganga ४२पामा माये શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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