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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० १ आत्मस्वरूपनिरूपणम् ३६३ 9 वतामित्र, स्यान्नास्ति चायोगिसिद्धानामिव किन्तु यस्य योगात्मत्वं भवति, तस्य द्रव्यात्मत्वं नियमादस्ति द्रव्यत्वं विना योगानामसंभवादिति भावः । गौतमः पृच्छति - 'जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स उपयोगाया, एवं सव्वत्य पुच्छा भाणियव्वा' हे भदन्त ! यस्य खलु जीवस्य द्रव्यात्मत्वं भवति तस्य किम् उपयोगात्मत्वं भवति ? एवं रीत्या सर्वत्र - अष्टविधेष्वपि आत्मसु परस्परम् पृच्छा भणितव्या - प्रश्नः कर्तव्यः तथाहि यस्य उपयोगात्त्वं भवति तस्य किं द्रव्यात्मत्वं भवति ? इत्यादिरीत्या शेषं स्वयमुन्नेयम्, भगवानाह - 'गोयमा ! जस्स दवियाया तस्स उवओगाया नियमं अस्थि, जस्स वि उपभोगाया तस्स वि दवियाया नियमं का योगात्मा के साथ संबंध समझना चाहिये तथा जहां पर द्रव्यात्मता होती है वहां योगवालों की तरह योगात्मता होती भी है, और अयोगी सिद्धों की तरह योगात्मता नहीं भी होती है। किन्तु जहां पर योगात्मता होती है वहां नियम से द्रव्यात्मता होती है। क्योंकि द्रव्यत्व के विना योगों का सद्भाव नहीं होता है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' जस्स णं भंते! दवियाया तस्स उवयोगाया, एवं सवत्थ पुच्छा भाणियन्त्रा' हे भदन्त ! जिस जीव में द्रव्यात्मता होती है उसमें क्या उपयोगात्मता होती है? और जिसमें उपयोगात्मता होती है उसमें क्या द्रव्यात्मता होती है ? इसी प्रकार से पूर्वोक्त अष्टविध आत्माओं में परस्पर संबंध होने के विषय में प्रश्न करना चाहिये । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम ! जस्स दविद्याया तस्स उवयोगाया नियमं अस्थि, जस्स वि उबओगाસાથેના સંબંધ પશુ કહેવા જોઇએ એટલે કે જ્યાં કૂબ્યાત્મતા હોય છે, ત્યા ચાગવાળા જીવાની જેમ ચેાગામતા હાય છે પણ ખરી અને અયાગી સિદ્ધોની જેમ ચાગામતાના અભાવ પણ રહે છે, પરન્તુ જ્યાં ગામતાના સદૂભાવ હાય છે, ત્યાં દ્રવ્યામાતાના તા અવશ્ય સદૂભાવ રહે છે, કારણ કે દ્રવ્યત્વના વિના ચેગેાના સદ્દભાવ હાતા નથી. " गौतम स्वाभीने अश्न- “ जस्स णं भंते! दवियाया, तस्स उवयोगाया, एवं सव्वत्थ पुच्छा भाणियव्त्रा " डे लगवन् ! मे उपमां द्रव्यात्मता हाय छे, તે જીવમાં શું ઉપયાગામતાને સદ્ભાવ હોય છે ખરે ? એજ પ્રમાણે પૂર્વોક્ત આઠે પ્રકારના આત્માએ ના પરસ્પર સબધ વિષયક પ્રશ્નો પણ પૂછવા જોઇએ. महावीर प्रभुना उत्तर -' जस्स दवियाया, तस्स उपयोगाया नियमं अस्थि, are उवयोगाया तस्स वि दवियाया नियम अत्थि " हे गौतम! ने पभां શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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