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________________ ३५८ भगवती सूत्रे प्रज्ञप्तः, 'तं जहा -दवियाया१, कसायाया२, जोगाया ३, उब जोगाया४, णाणाया५, दंसणाया ६, चरिताया७ वीरियाया८,' तद्यथा - द्रव्यात्मा१, कषायात्मार, योगात्मा३, उपयोगात्ना४, ज्ञानात्मा५, दर्शनात्मा६, चारित्रात्मा७, वीर्यात्माट, च । तत्र अति सततं गच्छति नानाविधान् अपरापरान् स्त्रपरपर्यायानिति आत्मा, अथवा ये ये यस्ते ते ज्ञानार्था इतिन्यायेन अत् धातो गत्यर्थत्वेन ज्ञानार्थस्वाद - अति- सततमवगच्छति उपयोगलक्षणस्वादित्यात्मा, तस्य चोपयोगलक्षणस्वात्सामान्येनैकविधत्वेऽप्युपाधिभेदात् अष्टविधत्वमवसेयम्, तत्र द्रव्यं-त्रिकालानुगामिगौणीकृत कषायादि पर्यायं दूषः आत्मा द्रव्यात्मा सर्वेषां जीवानाम्, आत्मा आठ प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा ' वह इस प्रकार से है१ दवियाया, २ कसायाया, ३ जोगाया ४ उवजोगाया, ५ णाणाया, ६ दंसणाया, ७ चरिताया, ८ वीरियाया' द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चरित्रात्मा और वीर्यात्मा जो निरन्तर अपरापर पर्याय को-स्वपर्ययरूप- ज्ञानादिक नानाप्रकार के गुणों को प्राप्त करता रहता है, अथवा-गत्यर्थक जितने भी धातु होते हैं वे सब ज्ञानार्थक होते हैं इस नियम के अनुसार गत्यर्थक अत् धातु का अर्थ ज्ञान होता है - सो इस व्युत्पत्ति के बल से उपयोग लक्षण वाला होने से यह आत्मा निरन्तर पदार्थों को जानता रहता है इस प्रकार यह आत्मा यद्यपि इस सामान्यरूप उपयोग लक्षण से एक ही प्रकार का है' परन्तु फिर भी उपाधि के भेद से यह आठ प्रकार का कह दिया गया है । जिस आत्मा में जो कि त्रिकालगामी है, जब कपा प्रभा छे-"दवियाया, कसायाया, जोगाया, उबजोगाया, णाणाया, देसणाया, चरित्ताया, वीरियाया " (१) द्रव्यात्मा, (२) उषायात्मा, (3) योगात्मा, (४) उपयोगात्मा, (५) ज्ञानात्मा, (६) दर्शनात्मा, (७) यरित्रात्मा मने (८) વીર્યંત્મા. જે નિર'તર અપરાપર પર્યાયને-સ્ત્રપર પર્યાય રૂપ જ્ઞાનાદિક વિવિધ પ્રકારના ગુણુંાને-પ્રાપ્ત કરતા રહે છે, એવા આત્માને સમજવા જોઇએ અથવા-ગતિ અ વાચક જેટલા ધાતુએ છે, તે ખધા ધાતુએ જ્ઞાના ક होय छे, या नियमानुसार गत्यर्थ: " अत् " धातुना अर्थ 'ज्ञान' थाय छे. આ વ્યુત્પત્તિ અનુસાર આત્મા ઉપયેગ લક્ષણુવાળા ઢાવાને કારણે પદાર્થોને નિર'તર જાણતા રહે છે. આ સામાન્ય ઉપયેગ લક્ષણુની અપેક્ષાએ તે આત્મા એક જ પ્રકારના છે, પરન્તુ ઉપાધિના ભેદની અપેક્ષાએ તેને આઠ પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે. ત્રિકાલાનુગામી આત્મામાં જ્યારે કષાયાદ્રિ પર્યાયાને ગૌણ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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