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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०७ सू० २ जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २६१ 1 कतया, यावत्-अकायिकतया, तेजःकायिकतया, वायुकायिकतया, वनस्पतिकायिकतया, देवत्वेन देवीत्वेन, आसनशयनभाण्डामत्रोपकरणतया किम् उत्पन्न पूर्व :- पूर्वमुत्पन्नो वर्तते ? भगवानाह - 'हंता, गोयमा जाव अनंतखुत्तो ' हे गौतम! इन्त सत्यम् यावत्-एको जीवः चतुःषष्टिलक्षासुर कुमारावासेषु resent असुरकुमारावासे पृथिवीकायिकादितया असकृत् अनेकवारम्, अथवा अनन्तकृत्वः - अनन्तवारम् उत्पन्नपूर्वः - पूर्वमुत्पन्नो वर्तते । गौतमः पृच्छति'सजीवा विणं भंते ? ' हे भदन्त ! सर्वजीवा अपि खलु चतुष्पष्टि लक्षासुरकुमारावासेषु एकैकस्मिन् अरकुमारावासे पृथिवीकायिकादितया किम् उत्पन्नपूर्वाः पूर्वमुत्पन्नाः वर्तन्ते ? भगवानाह एवं चेत्र, एवं जाव थणियकुमारेसु, कायिक रूप से, यावत् - अपकायिक रूप से, तेजःकायिकरूप से, वायुकायिक रूप से, वनस्पतिकायिक रूप से, देवरूप से, देवीरूप से और आसन, शयन, भाण्ड आदि उपकरणरूप से क्यापहिले उत्पन्न हो चुका है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता गोयमा ! जाव अनंतखुत्तो' हां गौतम ! यावत् एक जीव चौसठ लाख असुरकु मारावासों मेंसे प्रत्येक असुरकुमारावास में पृथिवीकायिक आदिरूप से अनेक बार अथवा अनंतवार पहिले उत्पन्न हो चुका है। अब गौतम पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ' सव्वजीवा वि णं भंते! ' हे भदन्त ! सब जीव भी क्या चौंसठ लाख असुरकुमारावासों में से एक एक असुरकुमारावास में पृथिवीकायिक आदिरूप से पहिले उत्पन्न हो चुके हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' एवं चेव - एवं जाव थणिय पूर्वे पृथ्वीयि३ये, माथि ३पे, तेस्माथि ३ये, वायुअयि४३ये, वनस्यतिमयि४३ये, हेव३ये, हेवी३ये, भने आसन, शयन, लांडाहि उपरण ३ये ઉત્પન્ન થઈ ચુકયેા છે ? महावीर प्रभुना उत्तर-" हंता, गोयमा ! जाव अणतखुत्तो" हे गौतम! એક જીવ, ચેાસઠ લાખ અસુરકુમારાવાસેામાંના પ્રત્યેક અસુરકુમારાવાસમાં પૃથ્વીકાયિક આદિ રૂપે અનેકવાર અથવા અનંત વાર પૂર્વે ઉત્પન્ન થઈ ચુકયા છે. गौतम स्वामीनो प्रश्न- " सव्व जीवा विण भंते ! " इत्यादि - हे भगवन् ! સઘળા જીવે શુ ચેાસઠ લાખ અસુરકુમારાવાસેામાંના પ્રત્યેક અસુરકુમારાવાસમાં પૂર્વે પૃથ્વીકાયિકાદ રૂપે ઉત્પન્ન થઇ ચુકયા છે? भड़ावीर प्रभुने। उत्तर-" एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारेसु, नाणत्तं आवासेसु, आवासा पुव्वभणिया " हे गौतम! सघना वा पशु, यासह लाथ असु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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