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________________ ૨૪૮ भगवती सूत्रे कश्चित् परमाणुपुमात्रोऽपि प्रदेशः, यः खलु तासां सहस्र संख्याकानाम् अजानाम, उच्चारेण वा- पुरीषेण वा, यात्रत्-प्रस्रवणेन वा मूत्रेण, श्लेष्मणा वा, सिङ्घाणकेन वा वान्तेन वा, पित्तेन वा, पूयेन वा, शुक्रेण वा, शोणितेन वा, चर्मभिर्वा, रोमभिर्वा शङ्गे र्वा, खुरै र्वा, नखे व, अनाक्रान्तपूर्वः - अस्पृष्टपूर्वः कदाचित् संभवेदपि । किन्तु - नैतत्संभवतीत्याह - ' णो चेवणं एयंसि एमहालयंसि लोगंसि लोगस्स सासयं भावं संसारस्य अणादिभावं जीवस्सय विश्वभावं कम्म बहुचं, जम्मणमरणवाहुल्लं च पडुच्च नत्थि के परमाणुयोग्गलमेते वि पए से ' ही वहां संभावना होती है कि वहाँ का कोईसा भी प्रदेश ऐसा नहीं बच सकता है कि जो उनकी लेंडियों आदि से स्पर्शित न हो चुका हो ' होजा विणं गोयमा ! तस्स अयावयस्स केई परमाणुपल मेते वि पएसे 'खैर, हे गौतम! यह बात भी कदाचित् स्वीकार कर ली जाये कि उस अजाव्रज का कोई सा परमाणुमात्र भी प्रदेश ऐसा हो सकता है 'जे णं तासिं अयाणं उच्चारेण वा जाव , हेहिं बा अणतपुब्वे ' जो उन हजार बकरियों की लेंडियों से यात् उनकी पेशाब से, श्लेष्म से, सिङ्गाणनाक के मैल से, वमन से, पित्त से, शुक्र से, शोणित से, चमड़े से, रोमों से, शृङ्गों से, खुरों से या उनके नखों से या खुरों के अग्रभागों से अनाकान्त पूर्व भी हो परन्तु 'णो चेव णं एयंसि ' ए महालयंसि लोगंसि लोगस्स य सासय भावं संसारस्य अणादिभावं जीवस्स य णिच्चभावं इतने बड़े એવા એક પણ પ્રદેશ ત્યાં બાકી રહ્યો નહી. હાય તેના એક એક પ્રદેશ बीडीओ। यहि वडे स्पर्शित थ थुम्यो ४ शे " होज्जा वि णं गोयमा ! तस्स अयावयस्स केई परमाणुपोगमेत्ते वि परसे" हे गौतम! उहाथ मे बात પશુ સ'ભવી શકે કે તે ખકરોના વાડાને એક પરમાણુ પુદ્ગલ પ્રમાણુ પ્રદેશ मेवा रही लय, "जेगे तासिं अयाणं उच्चारेण वा जाव णहेहिं वा अणावंत पुग्वे ' કે જે તે બકરીની લીડીએ વડે તેમના મૂત્ર વડે, તેમના કફૅ વડે, તેમના नाम्ना भेल वडे, वमन वडे, पित्त वडे, ५३ वडे, वीर्य वडे, बोडी वडे, थामडी वडे, रुवांटी वडे, श्रृंगी वडे, मरीओ वडे भने नया वडे (जरी. આના અગ્રભાગ વડે) અનાક્રાન્તપૂર્વ (પૃષ્ઠ થયા વિનાના) પણ હોય પરન્તુ " णोचेवणं पयंसि एमहालयंसि लोगस्स य सासयं भावं संसाररस य अणादिभाव, जीवरस य णिच्चभावं कम्मबहुत्तं, जन्ममरणबाहुल्लं च, पडुच्च नत्थि केई परमाणु पोग्गलमेत्ते वि परसे, अत्थणं अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि से तेणद्वेणं, तंचेव "" શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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