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________________ पमेयचन्द्रिका टी० ० ९ उ० १ ० १ जम्बूद्वीपस्वरूपनिरूपणम् ५७७ मेव सपूर्वापरेण जम्बूद्वीपो द्वीपः चतुर्दशसलिलाशतसहस्राणि षट्पश्चाशत्चसहस्राणि भवन्ति इति आख्यातम् , तदेवं भदन्त । तदेवं भदन्त ! इति ॥ मू० १ ॥ ॥ नवमशतकस्य प्रथम उद्देशः ॥ टीका-' तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नाम णयरी होत्था' वण्णओ' तस्मिन् काले तस्मिन् समये मिथिला नाम नगरी आसीत् वर्णकः, अस्याः है ? ( एवं जंबुद्दीव पन्नत्ती भाणियव्वा जाव एवामेव सपुव्वावरेणं जंधुदीवे दीवे चोदससलिलासयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवंतीति मक्खाया सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) हे गौतम यहाँ पर जैसा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में "चौदह लाख छप्पनहजार नदियां पूर्व पश्चिम में हैं" यहां तक जम्बूद्वीप के विषय में पाठ कहा गया है वहीं तक का पाठ कहना चाहिये । हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह विषय सर्वथा सत्य है, हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह विषय सर्वथा सत्य है। इस प्रकार कहकर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये। टीकार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा जम्बूद्वीप संबंधी वक्तव्यता का प्रतिपादन किया है-इसमें सर्वप्रथम इस वक्तव्यता का प्रतिपादन करने वाले भगवान महावीरस्वामी का मिथिला नगरी में पधारना और वहां इस विषय में प्रश्नोत्तर होना यह कहा गया है-वे कहते हैं-(तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल में अर्थात् इस अवसर्पिणी के चतुर्थ काल में और जब भगवान महावीर विचरते थे उस समय में (मिहिला नाम नयरी होत्था) "मिथिला" इस नामकी नगरी थी। (वण्णआ) (एवं जंबुद्दीवपन्नत्ती भाणियव्वा जाव एवामेव सपुवावरेणं जबुद्दीवे दीवे चोदसं सलिलासयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवतीति मक्खाया सेव भते ! सेव मते ! त्ति) गौतम ! ॥ विषयतुं 'भूदी५ प्रतिभा र प्रतिपादन કરવામાં આવ્યું છે તેવું પ્રતિપાદન અહીં પણ સમજી લેવું. “ચૌદ લાખ છપ્પન હજાર નદીઓ પૂર્વ-પશ્ચિમમાં છે, ” અહીં સુધી સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરે. ગૌતમ સ્વામી કહે છે કે “હે ભદન્ત ! આપની વાત ખરી છે. ભદન્ત ! આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સર્વથા સત્ય છે. ” આ પ્રમાણે કહીને વંદણા નમસ્કાર કરીને તેઓ તેમને સ્થાને બેસી ગયા. ટીકાથ–સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં જબૂદ્વીપની વક્તવ્યતાનું પ્રતિપાદન કર્યું छ. " तेणे कालेणं तेणं समएण" मा असमियाना याथा माराम न्यारे महावीर स्वामी वियरता हुताते समये " मिहिला नाम नयरी होत्था" मिथिता नामनी नगरी ती. “वण्णो " मी५५ति सूत्रमा २ भ० ७३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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