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________________ ४५२ भगवती सूत्रे , रिणामः एवमन्येऽपि बोध्याः । गौतमः पृच्छति - ' वनपरिणामे णं भंते ! कइविहे - पण्णत्ते ? हे भदन्त । वर्णपरिणामः खलु कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - ' गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते ' हे गौतम! वर्णपरिणामः खलु पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, ' तंजहाकालवन्नपरिणामे जाव सुक्किल्लवन्नपरिणामे ' तद्यथा - कालवर्णपरिणामः १, यावत् नीलवर्णपरिणामः २, लोहितवर्णपरिणामः ३, हरिद्रावर्णपरिणामः ४, शुक्ल वर्णपरिणामश्च ५ ' एवं एएणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुविहे, रसपरिणामे पंचवि, फासपरिणामे अट्ठविहे ' एवमुक्तरीत्या एतेन वर्ण विषयकाभिलापेन आला अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - ( वन्नपरिणामे णं भंते! कवि पण्णत्ते) हे भदन्त । वर्णपरिणाम कितने प्रकारका कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - ( पंचविहे पण्णत्ते ) हे गौतम! वर्णपरिणाम पाँच प्रकार का कहा गया है ( तं जहा ) जो इस तरह से है - ( कालवन्नपरिणामे जाव सुलिवन परिणामे ) कालवर्णपरिणाम, यावत्-नीलवर्णपरिणाम, लोहित (लाल ) वर्णपरिणाम, हरिद्रावर्णपरिणाम और शुक्लवर्णपरिणाम - ( एवं एएणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुबिहे, रसपरिणामे पंचवि, फासपरिणामे अट्ठविहे ) उक्तरीति के अनुसार इस वर्णविषयक अभिलाप - आलाप क्रम से गंध परिणाम दो प्रकार का कहा गया है, और वह सुरभि और दुरभि के भेद से दो प्रकार का होता है तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल, और मधुर के भेद से रसपरिणाम पांच प्रकार का कहा गया है । कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष के भेद से स्पर्शपरिणाम आठ प्रकार का कहा गया है। "7 उ गौतम स्वाभीनो प्रश्न - " वन्नपरिणामेणं भते ! कइविहे पण्णत्ते ? ભદન્ત ! વણુ પરિણામના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે ? महावीर प्रभुना उत्तर- ( गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते - तंजा ) परि शाभना नीचे प्रमाणे यांय अरा छे - ( कालवन्नपरिणामे जाव सुकिल्लवन्नपरिणामे ) (1) श्याभवार्थ परिणाम, (२) नीसवशु परिणाम, (3) सासवणु परिणाम, (४) हरिद्रा ( चीजो ) वर्षा परिणाम भने (4) शुम्वार्थ परिणाम, " एवं ए एणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुविहे, रसपरिणामे पंचविहे, फासपरिणामे अट्ठविहे " मा वर्णु विषय अलिसाय ( प्रश्नोत्तरी ) ना उभथी गंधपरिणाम मे પ્રકારનુ કહ્યું છે–(૧) સુરભિધ અને (૨) દુરભિગધ રસપરિણામનાં નીચે प्रभाषे यांच लेह उह्या छे-तीओ, उडवा, उषायसे। ( तुरी), जाटो ने भधुर. श्री भगवती सूत्र : ৩
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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