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________________ ४५० भगवतीसूत्रे शील श्रेयः ३, तत् कथमेतद् भदन्त ! एवम् ? गौतम ! यत् खलु ते अन्ययूथिका एवमाख्यान्ति, यावत्-येते एवमाहु-मिथ्या ते एवमाहुः, अहं पुनगौतम ! एवंमाख्यामि यावत् प्ररूपयामि-एवं खलु मया चत्वारः पुरुषजाताः प्रज्ञप्ताः-तद्यथाशीलसम्पन्नो नाम एकः, नो श्रुतसम्पन्नः१, श्रुतसम्पन्नो नाम एकः नो शीलसम्पन्नः२, एकः शीलसम्पन्नोऽपि, श्रुतसम्पन्नोऽपि ३, एको नो शीलसम्पन्नः, नो श्रुतक्खंति जाव एवं पति -एवं खलु सील सेयं १? सुयं सेयं २१ सुर्य सेयं सील सेयं ३) हे भदन्त ! अन्यतीर्थिक जन जो ऐसा कहते हैं, यावत्-इस प्रकार से प्ररूपित करते हैं कि शील ही श्रेयस्कर है १, श्रुत ही श्रेयस्कर है २, शील निरपेक्ष श्रुतश्रेयस्कर है और श्रुत निरपेक्ष शील श्रेयस्कर है, (से कहमेयं भंते ! एवं ) तो हे भदन्त ! उनका ऐसा कथन ठीक है क्या ? (गोयमा) हे गौतम ! (जन्नं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति, जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु) जो वे अन्यतीर्थिक जन ऐसा कहते हैं यावत् जो उन्हों ने ऐसा कहा है वह सब उनका कथन मिथ्या है । ( अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि, जाव पस्वेमि, एवं खलु मए चत्तारि पुरिस जाया पणत्ता) हे गौतम ! मैं तो ऐसा कहता हूं यावत् ऐसी प्ररूपणा करता हूं-कि चार पुरुष ऐसे होते हैं (तं जहा) जो इस प्रकार से है-(सीलसंपन्ने णामं एगे णो सुय संपन्ने १, सुयसंपन्ने नाम एगे नो सीलसंपन्ने २, एगे सीलसंपन्ने वि, ५च्यु-( अन्नउत्थियाण भंते ! एवमाइक्खंति जाव एवं परूवेति-एवं खलु सीलं सेयं१, सूर्य सेयं२, सुर्य सेयं सील सेयं३,) महन्त ! मन्य तीथि (मन्य મતવાદીએ) એવું કહે છે, “યાવત્ ” એવી પ્રરૂપણ કરે છે કે (૧) શીલ જ શ્રેયસ્કર છે, (૨) શ્રત જ શ્રેયસ્કર છે, (૩) શીલ નિરપેક્ષ શ્રત શ્રેયસ્કર છે भने श्रुत निरपेक्ष शास श्रेय२४२ छ, (से कहमेय भते ! एवं ) तोड ભદન્ત ! એમની એ માન્યતા શું ખરી છે? (गोयमा !) 3 गौतम ! ( जन्न ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति, जाव जे ते एवमाह'सु मिच्छा ते एवमासु) ते सन्यतार्थि। मे रे ४ छ, ते तमन समस्त ४थन भिथ्या-माटु छे. ( अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि, जाव, परूवेमि, एवं खलु मए चत्तारि पुरिस जाया पण्णत्ता) गौतम ! ई તે એવું કહું છું, “યાવત્ ” એવી પ્રરૂપણ કરું છું કે ચાર પુરુષે એવાં हाय छ, ( तजहा) भनी नीय प्रमाणे प्रा२ ५७ छ-(सीलसंपन्ने णाम, एगे णो सुयसंपन्ने१, सुयसंपन्ने णाम एगे नो सीलसंपन्ने२, एगे सोलसंपन्ने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૭
SR No.006321
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 07 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages776
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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