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________________ ३८२ भगवतीसूत्रे कायिकाः यावत् - अष्कायिकाः, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, यथा एकेन्द्रियाः नोज्ञानिनः, अपितु द्वयज्ञानिनः प्रतिपादितास्तथा इमेऽपि नोज्ञानिनः, अपितु द्वयज्ञानिनो नियमतः प्रतिपत्तव्याः । गौतमः पृच्छति - 'बें दिया णं पुच्छा' हे भदन्त ! अपर्याप्तकाः द्वीन्द्रियाः खलु किं ज्ञानिनः किं वा अज्ञानिनो भवन्ति ? इति पृच्छा मनः ? भगवानाह - नो नाणा, नो अन्नाणा नियमा' हे गौतम ! अपर्याप्तद्वी न्द्रियाणां केषाञ्चित्पुनः सास्वादन गुणस्थाने सम्यग्दर्शनस्य सद्भा वेन नियमात् छे ज्ञाने भवतः केषाञ्चित्पुनः सासादनगुणस्थान सम्यग्दर्शनस्यासद्भावेन नियमतो में अज्ञाने भवतः ' एवं जात्र पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं' एवम् अपर्याप्तद्वीन्द्रियवदेव यावत् अपर्याप्तक - त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिय-पञ्चेन्द्रियअपर्याप्त तेजस्कायिक, अपर्याप्त वायुकायिक, और अपर्याप्त वनस्पतिकायिक ये सब एकेन्द्रिय जीवकी तरह ज्ञानी नहीं होते हैं अपितु अज्ञानी ही होते हैं। इनमें नियमतः मस्यज्ञान और श्रुताज्ञानवाले होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'बेइंदियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! जो जीव अपर्याप्तक बेन्द्रिय हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'दोनाणा दोअन्नाणा नियमा' हे गौतम! जो अपर्याप्त दोइन्द्रिय होते हैं उनमें से कितनेक अपर्या प्तक दोइन्द्रियजीवोंके सासादन गुणस्थानकरूप सम्यग्दर्शन के सद्भावसे नियमतः मतिज्ञान और श्रुतज्ञान ये दोज्ञान होते है और कितनेक के इस सासादनगुणस्थानरूप सम्यग्दर्शनके असद्भावसे नियमतः मत्यज्ञान और श्रुताज्ञान ये दोअज्ञान होते हैं । ' एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं' इसी तरह से अपर्याप्तक बेन्द्रियजीवकीतरह ही यावत् जहा एगिंदिया' अपर्याप्त पृथ्वी अयि यावत् अपर्याप्त तेना, अपर्याप्त વાયુકાચિક અને અપર્યાપ્તક-વનસ્પતિકાયિક એ બધા એકેન્દ્રિય જીવાની માફક જ્ઞાનિ હોતા નથી. પરંતુ અન્નાની હાય છે. તેઓ નિયમત મત્યજ્ઞાન અને શ્રુતાજ્ઞાનવાળા હોય છે. हुवे गौतम स्वाभी मे न्द्रिय कवोना विषयमा छे छे 'बेइंदियाणं पुच्छा' हे अहन्त ! ? व अपर्याप्त मे न्द्रियवाणा होय छे. ते शुं ज्ञानी होय छे अज्ञानी ? 3. 'दो नाणा दोअन्नाणा नियमा 'हे गौतम ने अपर्याप्त मे ઇન્દ્રિય જીવ હોય છે તેએામાં કેટલાકને સાસાદન ગુણુકસ્થાનરૂપ સમ્યગ્દશનના સદ્ભાવથી નિયમતઃ મતિજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન હોય છે અને કેટલાકને આ સાસાદન ગુણુકસ્થાનરૂપ સમ્યગ્ દનના અસદ્ભાવથી નિયમતઃ મત્યજ્ઞાન, અને શ્રુતાજ્ઞાન એ બે અજ્ઞાન હોય છે. ' एवं जान पंचिदिय तिरिखखजोणियाणं' येन रीते पर्याप्त मे इन्द्रि भवानी भाई શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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