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________________ चन्द्रिका टीका श. ८ उ. १ उद्देशकविषयविवरणम् 'आसीविस' इति - आशीविषः = सर्पः, द्वितीयो देश के आशीविषादिविषयवक्तव्यता २, 'रुक्ख' इति वृक्षः - तृतीयोदेश के संख्यातजीवादिवृक्षसम्बन्धिवक्तव्यता ३, 'किरिय' इति क्रिया, चतुर्थो देशके कायिक्यादिक्रियासम्बन्धिवक्तव्यता ४, 'आजीव' इति आजीवः - पञ्चमोदेशके आजीविक सम्बन्धिवक्तव्यता ५, 'फासुग' इति प्रासुकः षष्टोदेशके मासुकदानादिविषयकवक्तव्यता ६, 'अदत्तं ' इति - अदत्तम् - सप्तमोदेशके अदत्तादानसम्बन्धिवक्तव्यता ७, 'पडिणीय' इति प्रत्यनीकः - अष्टमोदेशके गुर्वादिविद्वेषिरूपप्रत्यनीकसम्बन्धिवक्तव्यता ८, 'बंध' इति बन्धः - नवमोदेशके प्रयोगवन्धादि - टीकार्थ - इस गाथा द्वारा सूत्रकारने इस आठवें शतकके दश १० उद्देशकों द्वारा जिस२ विषयका कथन किया गया है वह२ अर्थ संग्रहीत करके प्रकट किया है । 'पोग्गल' प्रथम उद्देशक में पुद्गलके परिणामकी वक्तव्यता प्रतिपादित हुई है । 'आसीविस' द्वितीय उद्देशक में आशीविष सर्प आदिके विषयकी वक्तव्यता प्रतिपादित हुई है । 'रुक्ख' तृतीय उद्देशक में संख्यात जीवादि वृक्ष संबंधी वक्तव्यता प्रतिपादित हुई है । 'किरिय' क्रिया चतुर्थ उद्देशक में कायिकी आदि क्रिया संबंधी वक्तव्यता प्रतिपादित हुई है । 'आजीव पंचम उद्देशक में आजीविक संबंधी वक्तव्यता प्रतिपादित हुई है। 'फासुग' छठे उद्देशकमें प्राक दानादि विषयकवक्तव्यता प्रतिपादित हुई है 'अदत्त' सप्तम उद्देशक में अदत्तादान संबंधी वक्तव्यता प्रतिपादित हुई है 'पडिणीय' आठवें उद्देशक में गुर्वादिमें विद्वेषीरूप प्रत्यनीक वक्तव्यता प्रतिपादित हुई है । ટીકા – આ ગાથા દ્વારા સુત્રકારે આઠમાં શતકનાં દસ ઉદ્દેશમાં જે જે विषयानुं प्रतिपादन ४२वामां मायु छे, ते प्रस्ट उयु छे, पहेला 'पोग्गल' नामना उद्देशम्भां इङ्गलोना परिणाभनी वहुतव्यतानुं प्रतियाहन उरायुं छे. जीन 'आसीविस' ઉદ્દેશકમાં શીવિષ- સર્પ આદિના વિષયની વકતવ્યતાનું પ્રતિપાદન કરાયું છે, ત્રીજા 'रुक्ख' नामना उद्देशउभां संध्यात वाहि वृक्षनी वहुतव्यतानुं प्रतिपादन श्वामां आयु छे. थोथा 'किरिय' नामना उद्देशम्मा अमिडिया संधी वक्तव्यतांनुं प्रतियाहन ड्यु छे. यांथमा 'आजीव' नामना उद्देशऽभां मालविङ संबंधी वक्तव्यतानुं प्रतिपादन युं छे. छट्टा 'फासुग' नामना उद्देशम्मां प्रासुर हानाहिनु प्रतिपादन ४रायुं छे. सातमां 'अदत्त' નામના ઉદેશકમાં અદત્તાદાન સંબંધી वतव्यतानुं पतिपादन रायु छे. आसां 'पडिणीय' नामना उद्देश मां गुरु महिमां વિદ્વેષીરૂપ પ્રત્યેનીક વકતવ્યતાનું પ્રતિપાદન કરાયું છે. નવમાં નામના ઉદ્દેશકમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
SR No.006320
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages823
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size46 MB
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