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________________ ८३६ भगवतीस्त्रे अल्पवेदनतरकचेव भवति ? 'जे वा से पुरिसे अगणिकाय उज्जालेइ, जे वा से पुरिसे अगणिकाय निव्वावेइ ? यो वा खलु स पुरुषः अग्निकायम् उज्ज्वलयति प्रज्वलयति, यो वा खलु सः अपरः पुरुषः अग्निकाय निर्वापयति विध्यापयति, तयोर्मध्ये इत्यर्थः । भगवानाह-'कालोदाई' हे कालोदायिन् ! 'तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकाय उज्जालेइ' तत्र तयोर्मध्ये खलु यः स पुरुषः अग्निकायम् उज्ज्वलयति ‘से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव, जाव महावेयणतराए चेव' स खलु अग्निकायप्रज्वालकः पुरुषः महाकर्मतरकश्चैव यावत्-महाक्रियतरकश्चैव, महास्रवतरकश्चैव, महावेदनतरकश्चैव भवति, अथ च 'तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकास निव्वावेइ' तत्र तयोर्मध्ये खलु यः स पुरुषः अग्निकाय निर्वापयति=विध्यापयति, ‘से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव, जाव अप्पवेयणतराए चेव' स खलु तरक, और अल्पवेदनतरक, होगा ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं-'कालोदाई !! हे कालोदायिन ! 'जे वा से पुरिसे एगणिकायं उज्जालेइ, जे वा से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेह' जो पुरुष अग्निकाय को सलगाता है और जो पुरुष अग्निकायको बुझाता है 'तत्थ णं पुरिसे अगणिका यं उज्जालेइ' सो इन दोनोंके बीच में जो पुरुष अग्निकायको जलाता है 'से गं पुरिसे महा कम्मतराए, चेव, जाव महावेयणतराए चेव' वह अग्नि जलानेवाला पुरुष तो महाकर्मवाला, महाक्रियावाला, महास्रववाला और महावेदनावाला होगा तथा 'तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेइ' जिस पुरुषने उस अग्निकाय को बुझाया है ‘से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव' वह पुरुष अल्पकर्मवाला ____ोयाना प्रश्न उत्तर भापता महावार प्रभु छ - 'कालोदाई। 3 यी! 'जे बा से पुरिसे अगणिकाय उज्जालेइ, जे वा से पुरिसे अगणिकाय निव्वावेइ' के पुरुष मनिनायने सणावे छ, भने पुरुष मनायने मालवे, ते पन्ने पुरुषोमाथा 'तत्थणं जे से पुरिसे अगणिकाय उज्जालेइ' २ पुरुष ममिायने सजावे छ, ‘से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव, जाव महावेयणतराए चेव' ते मड पाणी, महाठियावाणी, मी आसवाणा भने भावनापण यश. ५२न्तु ' तत्थणं जे से पुरिसे अगणिकाय निव्वावेइ' २ पुरुष ममियने यासवे छे, 'से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए गेव' ते पुरुष २८५४मना मध, मामिडी माहिमपछियायाવાળે, અલ્પઆસવવાળ અને અલ્પવેદનાવાળો થશે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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