SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे अथ द्वितीयगाथामाह-'सत्तपाणि' इत्यादि । सपाणि से योवे' सप्तप्राणाः ये सप्तउच्छवास-निःश्वासाः स 'स्तोकः' इत्युच्यते, 'सत्तथोबाई से लवे' सप्तस्तोकाः ये एकोनपञ्चाशदुच्छवोसनिःश्वासरूपाः स एको लवः इत्युच्यते, 'लवाणं सत्तहचारिए एस मुहुत्ते वियाहिए' लबानां सप्तसप्ततिः सप्त सप्ततिसंख्यकलवाः एष एकः मुहतों व्याख्यातः कथितः इति द्वितीयगाथार्थः ॥२॥ एतस्यैव संग्रहार्थ तृतीयगाथामाह-'तिण्णि' इत्यादि । त्रीणि सहस्राणि समशतानि, त्रिसप्ततिश्व उच्छवासाः (३७७३) त्रिसप्तत्यधिकसप्तशतोचरसहसत्रयम् उच्छवासनिःश्वासाः एष एकमुहूत उद्दिष्टः प्रतिपादितः सर्वैः अनन्त द्वितीय गाथा का अर्थ इस प्रकार से है- 'सत्त पाणूणि से थोवे' जो सात उच्छ्वास निःश्वास है वे एकस्तोक कहलाते हैं अर्थात् सात उच्छवास नि:श्वासों का १ एक स्तोक होता है। सत्त थोवाइंसे लवे' सात स्तोकों का १ एक लव होता है। अर्थात् ४९ उच्छवास निःश्वास एक लवकाल में होते हैं । ' लवाणं सत हत्तरिए एस मुहुत्ते वियाहिए' ७७ लव प्रमाण काल १ एक मुहूर्तरूप होता है। इस प्रकार से यह द्वितीय गाथा का अर्थ है । तृतीय गाथा का अर्थ इस प्रकार से है- ३७७३ जो उच्छवास निःश्वास है वही एक मुहूर्त का प्रमाण है। ऐसा अनन्तज्ञानी सर्वज्ञ केवली भगवान् ने कहा है। इस तरह सात प्राणरूप उच्छवास नि:श्वासोंका एक स्तोक होता है और एक लवमे सात स्तोक होते है अतः ७से गुणित हुआ सप्तस्तोकात्मक लव ४९ उच्छ्वास निःश्वामरूप हो जाता है। और एक मुहतमें ७७ लव हो जाते हैं। ७७ लवोंके साथ ४९का गुणा करने पर ३७७३ उच्छ्वास निःश्वासॉकी संख्या एक मुहतमें आजाती है। भी थानो म मा प्रभा छ-'सत्तपाणि से थोवे' सात प्राय अथवा तो सात २७पासनिश्वासानु ४ रता' थाय छे. 'सत्त थोवाइं से लवे' સાત સૅકેનું એક લવ થાય છે. એટલે કે એક લવ પ્રમાણ કાળમાં ૪૯ ઉચછવાસनिश्वास थाय छे. 'लवाणं सत्तहत्तरिए एस महत्ते वियाहिए' ७७ ०१ प्रमाण કાળનું એક મુહુર્ત થાય છે. આ પ્રમાણે બીજી ગાથાનો અર્થ થાય છે ત્રીજી ગાથાને અર્થ આ પ્રમાણે છે૩૭૭૩ ઉચ્છવાસ નિઃશ્વાસોનું એક સુહર્ત થાય છે, એવું અનંત જ્ઞાની સર્વજ્ઞ કેવળી ભગવાને કહ્યું છે. આ રીતે સાત પ્રાણરૂપ ઉચ્છવાસ-નિઃશ્વાસનું એક સ્ટેક થાય છે, અને એક લવમાં સાત સ્તક હોય છે. માટે ૪૯ (૭x૭) ઉચ્છવાસનિઃશ્વાસ રૂપ એક લવપ્રમાણુ કળ છે. એક મુહૂર્તમાં ૭૭ લવ હોય છે. તેથી ૭૭ લવેની સાથે જ ગુણાકાર કરવાથી જે ૩૭૭૩ ઉચ્છવાસનિશ્વાસની સંખ્યા આવે છે, એટલું જ એક શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૫
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy