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________________ ५३४ भगवतीसूत्रे 1 कर्कशः रौद्रदुःखैर्वेदितुं योग्यानि तानि कर्कशवेदनीयानि असातावेदनीयानि कर्माणि क्रियन्ते=भवन्ति किम् ? भगवानाह - 'गोयमा ! हंता, अस्थि' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् जीवानां कर्कशवेदनीयानि कर्माणि भवन्ति स्कन्दकाचार्यशिष्याणामिवेति । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति - 'कहंणं भंते ! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जति' हे भदन्त ! कथं खलु केन प्रकारेण जीवानां कर्कशवेदनीयानि कर्माणि क्रियन्ते भवन्ति ? भगवानाह - गोयमा ! पाणाइवा एवं जाव - मिच्छादंसणसरलेणं' हे गौतम! प्राणातिपातेन यावत्- मिथ्यादर्शनशल्येन जीवानां वेदनीयानि कर्माणि भवन्ति, तदाह - ' एवं खलु गोयमा ! जीवाणं संभवित है कि जीवा णं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जति' जीवोंके कर्कशवेदनीय कर्मों का बंध होता है ? रौद्र भयंकर हिंसा परिणामों द्वारा बडी मुश्किलके साथ जो कर्मवेदन करने के योग्य होते हैं वे कर्म कर्कशवेदनीय कर्म हैं ऐसे ये कर्म असातावेदनीयरूप होते हैं । इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम! 'हंता अस्थि' हां स्कन्धाचार्य शिष्यकी तरह जीवोंके कर्कशवेदनीय कर्मोंका बंध होता है । अब गौतम ! इस विषय में कारण जानने की इच्छा से प्रभुसे पूछते हैं कि 'कहं णं भंते ! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जंति' हे भदन्त ! जीवोंके कर्कशवेदनीयरूप कर्मोंका बंध किस प्रकार से किन कारणोंसे होता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'पाणाइवाएणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं' प्राणातिपात जीवविराधना से यावत् मिथ्यादर्शनछे- डे लहन्त ! शु . पात संभवित हो है' जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जति ' वे ४४ शवेहनीय भेना गंध रे ? रौद्र (लय ४२) हिंसा परिणामी દ્વારા ભારે મુશ્કેલીથી જે કર્મોનું વેદન કરી શકાતુ હાય છે, એવાં કમેને કશવેદનીય કાં કહે છે. એવાં તે ક્રમે અસાતા વેદનીય રૂપજ હાય છે. तेन। उत्तर व्यापता महावीर अनु छे है- 'गोयमा ! हंता, अस्थि' हा, ગૌતમ! સ્કન્યાચાય શિષ્યની જેમ જીવા કશવેદનીય કમ ખાંધે છે ખરાં, હવે તેન अशु भागवानी निज्ञासाथी गौतम स्वामी पूछे छे : 'कहं णं भंते ! जीवाणं कक्कसवेयणिज्जा कम्मा कज्जति ? ' डे महन्त ! वो देवी रीते (यां यां કારણેાથી કઈ શવેદનીય દુઃખકારક કર્માંના બંધ કરે છે? તેના ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ - ' गोयमा !' हे गौतम ।' पाणाइवाएणं जाष मिच्छादंसणसल्लेणं ' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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