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________________ ४७८ भगवतीसूत्रे एव निर्जरासमयः, न वा निर्जरासमय एव वेदनासमयः । गौतमः पृच्छति'से केणणं एवं बुच्चर - जे वेयणासमए न से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए न से वेणासमए ? हे भदन्त ! तत् केनार्थेन कथं तावत् एवमुच्यते - यो वेदनासमयः न स निर्जरासमयः, यो निर्जरासमयः न स वेदनासमयः ? भगवानाह - 'गोयमा ! जं' समयं वेदेति नो तं समयं निज्जरेंति, जं समयं निज्ञ्जरेंति नो तं समयं वदेति' हे गौतम ! यं समयं यस्मिन् समये कर्म वेदयन्ति, नो तं समयं तस्मिन् समये निर्जरयन्ति, अथ च यं समयं यस्मिन् समये निर्जरयन्ति नो तं समयं तस्मिन् समये वेदयन्ति 'अण्णम्मि समए वेदेति, समय है वही निर्जराका समय नहीं है और जो निर्जराका समय हैयही वेदनाका समय नहीं है, इस विषयमें कारण जानने की इच्छा से प्रभु से गौतम कहते हैं कि-'से केणद्वेणं एवं बुच्चइ' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं किं 'जे वेयणासमए, न से निज्जरासमए, जे निज्जरासमए न से वेषणासमए' जो वेदनाका समय है वही समय निर्जराका नहीं है और जो समय निर्जराका है वही समय वेदना का नहीं हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम! 'जं समयं वेदेति नो तं समयं निज्जरेंति, जं समयं निज्जरेति नो तं समयं वेदेति' जीव जिस समय में कर्मका वेदन करते हैं, उसी समय में वे उसकी निर्जरा नहीं करते और जिस समय में वे उसकी निर्जरा करते हैं उसी समय में उसका वेदन नहीं करते हैं। अण्णम्मिसमए वेदेंति, अण्णम्मिसमए સમય હાતા નથી અને જે નિરાના સમથ હોય છે, એ જ વેદનાનેા સમય હોતા નથી હવે તેનું કારણ જાણવાની જિજ્ઞાસાથી ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને આ પ્રમાણે अश्न पूछे छे - 'से केणणं भंते! एवं बुच्चर' हे लहन्त ! याच शा भर मेवुं रहा है। है 'जे वेयणोसमए, य से निज्जगसमए, जे निज्जरासमए, य से वेयणा समए' જે વેદનાને સમય હાય છે, એ જ નિરાના સમય હોતા નથી, અને જે નિરાને સમય હાય છે, એ જ વેદનાનો સમય હૈાતા નથી ? तेन। उत्तर भापता महावीर अलु छ - 'गोयमा !' हे गौतम! 'ज' समयं वेदेति नो तं समयं निज्जरेंति, जं समयं निज्जरेंति, नो तं समयं वेदेति' व समये नुं वेन पुरे छे, मेन समये तेनी निश पुरता नथी, અને જે સમયે કર્મની નિર્જરા કરે છે. એ જ સમયે તે તેનું વેદન કરતા નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : પ
SR No.006319
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages866
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size47 MB
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