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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ५ उ०१ सू०३ अन्यतीर्थिकमिथ्यात्वनिरूपणम् १७ यस्कालावच्छेदेन इहभवायुष्कं पतिसंवेदयति ‘नो तं समयं परभवियाउयं पडि संवेदेइ 'नो तं समयं तत्कालावच्छेदेन परभवायुष्कं प्रतिसंवेदयति, अथ च 'जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेह' यं समय परभव युष्क प्रतिसंवेदयति 'नो तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेई' ना त समयम् इहभवायुष्क प्रतिसंवेदयति । तदेव दृढीकरणार्थ प्रकारान्तरेणाह-' इहभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए' इहभवायुष्कस्य प्रतिसंवेदनायाम् प्रतिसंवेदनाकाले 'नो परभवियाउयं पडिसंवे. देइ ' नो परभवायुष्क प्रतिसंवेदयति, परभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए' पर भवायुष्कस्य प्रतिसंवेदनायां प्रतिसंवेदनाकाले 'नो इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ' नो इहभवायुष्क प्रतिसंवेदयति । अन्ते उपर्युक्तमुपसंहरति-' एवं खलु एगे जीवे ' इत्यादि । हे गौतम ! एवम् उक्तरीत्या खलु एको जीवः ‘एगेणं सम. नो तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ' अतः जिस समय जीव इस भव संबंधी आयु को भोगता है तो उस समय में वह परभव संबंधी आयु नहीं भोगता और 'जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेह' जिस समय परभवसंबंधी आयुको भोगता है 'तं समयं नो इहभवियाउयं पडिसंवेदेह' उस समय वह इस भवसंबधी आयु को नहीं भोगता है। इसी बात को दृढ़ करने के लिये सूत्रकार ने दूसरी तरह से आगे यह 'इहभवियाउस्स पडिसंवेदेइ-परभवियाउस्स संवेयणाए, नो इह भवि याउयं पडिसंवेदेइ' पाठ कहा है। तात्पर्य कहने का यह है जीव जब इसभव संबंधी आयु का प्रति संवेदन करता है-उस काल में वह परभवसंषधी आयु का प्रतिसंवेदन नहीं करता है-और जिस समय परभव संबंधी आयु का प्रतिसंवेदन करता है उस समय इसभव संबंधी आयु का वह प्रतिसंवेदन नहीं करता है इस तरह हे गौतम! 'एगे તેથી જ્યારે જીવ આ ભવના આયુને ભોગવતો હોય છે. ત્યારે તે પરભવના मायुने सागवत नथी, मने (ज समय परभवियाउय' पडिसंवेदेइ, नो त समय इहभवियाउय पडिसंवेदेइ ) क्यारे ७१ ५२मना मायुने लागवत। હોય છે, ત્યારે આ ભવના આયુને ભગવતે નથી. એજ વાતને વધારે દૃઢ ४२वान भाटे सूत्रधारे भी शत मे पात समलवी छ-( इह भवियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो परभवियाउय पडिसंवेरेइ, परभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो इहभवियाउय पडिसंवेदेइ) 0 न्यारे सामना आयुनुं वन डाय છે, ત્યારે પરભવના આયુનું વેદન કરતા નથી, અને જ્યારે જીવ પરભવ સંબંધી આયનું પ્રતિસંવેદન કરે છે, ત્યારે આભવ સંબંધી આયુનું પ્રતિવેદન (भनुम१) ४२त। नथी. गौतम मा शत " एगे जीवे " : १ श्री. भगवती सूत्र:४
SR No.006318
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1142
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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