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________________ भगवतीसूत्रे ____टीका-१एणं ते थेरा भगवंतो' ततः खलु ते स्थविरा भगवन्तः 'तेसि समणोवासयाण' तेभ्यः श्रमणोपासकेभ्यः 'तीसे य महइ महालयाए परिसाए' तस्यां च महाति महालयायां परिषदि 'चाउज्जामं धम्म परिकहेंति' चातुर्यामं चतुर्महाव्रतरूपं धर्म परिकथयन्ति 'जहा केसिसामिस्स' यथा केशिस्वामिनः चातुर्यामधर्मकथनरूपा धर्मकथा ' तथा विज्ञेया ' तत्र चत्वारि महाव्रतानि-यथा'सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमण १।सव्वाओ मुसावायाओ वेरमण २। सव्वाओ अदिनादाणाओ वेरमणं ३ । सव्वाओ परिग्गहाओ बेरमणं४ । इत्यादि धर्मकथा। मैथुनस्य परिग्रहेऽन्तर्भूतत्वाच्चत्वारि महाव्रतानि भवन्तीति । फियत्पर्यन्तं धर्मकथा ___टीकार्थ-(तएणं ते थेरा भगवंतो ) उसके बाद उन स्थविर भगवंतोंने ( तेसिं समणोवासयाणं) उन श्रमणापासकों के लिये (तीसे य महइमहालयाए परिसाए) उन विशाल परिषदा में (चाउज्जामं धम्म परिकहेंति ) चार महाव्रतरूप धर्म का उपदेश दिया। (जहा केसिसामिस्स ) जैसे केशि स्वामी की चारमहाव्रत कथनरूप धर्मकथा है, उसी प्रकार इन स्थविर भगवन्तों की भी वह धर्मकथा जाननी चाहिये । उस धर्मकथा में चार महाव्रत इस प्रकार से कहे गये हैं-( सव्वाओ पाणाइ वायाओ वेरमणं १, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं २, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमण ३, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ४ " समस्त प्रणातिपात से विरक्त होना, समस्त मृषावाद से विरक्त होना, समस्त अदत्तादान से विरक्त होना, समस्त परिग्रह से विरक्त होना, यहां पर जो ब्रह्मचर्य को महाव्रत में नहीं कहा गया है उसका कारण यह है कि --(तएण' ते थेरा भगवंतो) त्या२ मा६ ते २थवि२ मा तामे (तेसिं समणोवासयाण) ते श्रमले। पासोने ( तीसे य महइ महालयाए परि. साए) ते विण परिषद (सला) Hi (चाउज्जाम धम्म परिकहति) यार भडा३५ यमन पढेश द्वीधे(जहाकेसिसामिस्स ) शिस्वामीनी या२ मडाવ્રત કથનરૂપ ધર્મકથા જેવી છે એવી જ આ સ્થવિર ભગવંતેની પણ ધર્મકથા સમજવી. તે ધર્મકથામાં નીચે પ્રમાણે ચાર મહાવ્રત કહ્યા છે– "१ सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमण , समस्त प्रातिपातथी वि२४त थ. "२ सव्वाओ मुसावायाओ वेरमण "-समस्त भूषापाथी वि२४त थ. "३ सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमण' -समस्त महत्तहानथी तिथ: "४ सव्वाओ परिगहाओ वेरमण "-समस्त परिथी वि२४त थषु, અહીં બાચયને મહાવ્રતમાં ગણાવ્યું નથી કારણ કે મૈથુનને પરિગ્રહમાં સમા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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