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________________ भगवतीसूत्र शिंघाणजल्लपरिष्ठापनिका समितः मनस्समितः वचः समितः कायसमितः मनोगुप्तो वचोगुप्तः कायगुप्तो गुप्तो गुप्तेन्द्रियो गुप्तः ब्रह्मचारी त्यागी लज्जावान् ऋजुः धन्यः क्षांति क्षमोजितेन्द्रियः शोधितोऽनिदानोऽनुत्सुकोऽबहिर्लेश्यः सुश्रामण्यरतो दान्तः, इदमेव नैग्रन्थं प्रवचनं पुरतः कृत्वा विहरति ।। मू० १३ ॥ जल्ल शिंघानक परिष्ठापनिकासमिति, इन पांच समितियों का अच्छी तरह से पालन करने लगे, इसलिये वे ( मनसमिए, वयसमिए, काय. समिए, मणगुत्ते, वयगुत्ते कायगुत्ते ) वे मन की क्रिया में सावधान होने से मनः समित, वचन की क्रिया में सावधान होने से वचः समित, कोय की क्रिया में सावधान होने से कायसमित, तथा मन को वश में करने से मनोगुप्ति से युक्त, वचन को वश में करने से वचनगुप्ति से युक्त और काय को वश में करने से कायगुप्ति से युक्त हो गये, (गुत्ते गुत्तिदिए, गुत्तभयारी, चाई, लज्जू, धन्ने, खंतिखमे, जिइंदिए, सोहिए, अणियाणे अप्पुस्तुए, अबहिल्लेसे सुसोमण्णरए दंते इणमेव ग्गिंथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ ) तबा जीवों की रक्षा करने वाला होने से गुप्त, अपनी पांचों ही इन्द्रियों को अपने वश में करने से गुप्तेन्द्रिय, नव वाडसहित ब्रह्मचर्यके पालने से गुप्त ब्रह्मचारी हो गये। चाई-सच्चे त्यागी बन गये । लज्जू-सरल प्रकृति से संपन्न हो गये। धन्न-उन्हों ने अपने जीवन को धन्य बना लिया। खंतिखमे-वे शान्ति (૫) ઉચ્ચાર-એલ-જલ્લ સિંઘાનક પરિષ્ઠાપનિકા સમિતિ નું યથાર્થ પાલન ४२१॥ साया. ( मनसमिए, वयसमिए, कायसमिए, मणगुत्ते, वयगुत्ते कायगुत्ते) તેઓ મનની ક્રિયામાં સાવધાન હોવાથી મનઃ સમિતિ થઈ ગયા, વચનની ક્રિયામાં સાવધાન હોવાથી વચન સમિત થઈ ગયા, અને કાયાની ક્રિયામાં સાવધાન હોવાથી કાય સમિતિ થઈ ગયા. મન, વચન અને કાયા પર કાબૂ રાખવાને કારણે તેઓ મનગુપ્તિ, વચન ગુપ્તિ અને કાય ગુણિથી યુક્ત બની गया. (गुत्ते, गुत्तिदिए, गुत्तबंभयारी, चाई, लज्जू , धन्ने, खंति, खमे, जिइंदिए, सोहिए, अणियाणे, अप्पुस्सुए, अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव णिगंथं पावयणं पुरओ कप्उ विहरइ) तथा तेस। वानी २क्षा ४२॥२॥ हावाथी गुत, પિતાની પાંચે ઈન્દ્રિયોને કાબૂમાં રાખતા હોવાથી ગુતેન્દ્રિય અને નવ વાડ સહિત બ્રહ્મચર્યનું પાલન કરતા હોવાથી ગુસબ્રહ્મચારી બન્યા. તેઓ "चाई"-साया त्या अन्या. (लज्जू) स२१ स्वभावना मन्या तभी तमना पनने “धन्य” साथ मनाव्यु “ खतिखमे" तेमा क्षमा भने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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