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________________ ४४८ भगवतीसूत्रे टीका-'तेणं कालेणं' तस्मिन् काले-अवसर्पिणीचतुर्थारके ' तेणं समएणं ' तस्मिन् समये-श्रेणिकशासनकाले 'रायगिहे णामं नयरे होत्था ' राजगृहं नाम नगरमासीत् , ' वण्णओ' वर्णकः 'सामी समोसढे ' स्वामी समवसृतः, भगवान् समागतः । 'परिसा णिग्गया' पनिर्गता 'धम्मो कहिओ' धर्मः कथितः, 'परिसा पडिगया ' परिषत् प्रतिगता, 'तेणं कालेणं' तस्मिन् काले, समा विसर्जनान्तकाले 'तेणं समएण' तस्मिन् समये उच्छ्वासनिःश्वासादिप्रश्नोद्भवसमये पाणमंति वा, उस्ससंति वा नीससंति वा ) ये भी जीव भीतर में श्वास ग्रहण करते हैं भीतर में श्वास छोड़ते हैं बहिर में श्वास ग्रहण करते और बहिर में निःश्वास छोड़ते हैं। टीकार्थ- (तेणं कालेणं तेणं समएणं ) काल से यहां अवसर्पिणी चौथा काल लिया गया है और समय से श्रेणिक राजा के शासन समय लिया गया है । अतः अवसर्पिणी के चौथे आरे में और श्रेणिक राजा के शासन समय में (रायगिहे णामं नयरे होत्था ) राजगृह नाम का नगर था (वण्णओ सामी समोसढे ) इस नगर का वर्णन औपपातिक सूत्र में वर्णित चंपा नगरी के समान है यह बात यहाँ ( वण्णओ) पद से सूत्रकार ने प्रगट की है । उस नगर में स्वामी-श्रमण भगवान महावीर प्रभु-पधारे। ( परिसा निग्गया ) सभा प्रभु का धर्मोपदेश सुनने के लिये नगर से निकली (धम्मो कहिओ) प्रभुने धर्म का उपदेश दिया। (परिसा पडिगया) धर्मोपदेश सुनकर सभा विसर्जित हो गई। (तेणं कालेणं तेणं सभएणं ) पद से यहां ममा विसर्जन के अनन्तर उस्ससंति वा णीसस्संति वा) ते ५५] २५२ पास से छे. ४२ प्रवास છેડે છે, બહારથી શ્વાસ ગ્રહણ કરે છે અને નિઃશ્વાસને બહાર કાઢે છે. -" तेणं कालेणं तेणं समएणं " 0 ५४१3 मही असचिहाना ચોથો આરો લેવામાં આવ્યું છે. અને “સમય” પદથી શ્રેણિક રાજાને શાસન સમય લેવામાં આવ્યું છે. એટલે કે અવસર્પિણીના ચોથા આરામાં શ્રેણિક शन शासन समये " रायगिहे णामं नयरे होत्था" २२०४२नाभनु नगर इत. “वण्णओ सामी समोसढे" ते ना२नु वर्णन मो५५ति: सूत्रमा - वेसी या नगरी नी मा समाबु, को पात “वण्णओ" ५४थी सूत्रारे मतावी छे. ते नगरमा श्रम भगवान महावीर प्रभु पयार्या. “परिसा निगया" નગરમાથી લેકેની પરિષદ પ્રભુને ઉપદેશ સાંભળવા માટે પ્રભુ પાસે જવા 5431. "धम्मो कहिओ' प्रयुमे तेभने धर्भापहेश हीधी. “परिसा पडिगया" धापदेश सांगणान परिषद त्यांथी पाछी श्री. " तेणं कालेणं तेणं समपणं " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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