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________________ -- -- -- - - - --- ૨૨૪ भगवतीलूत्रे वीर्येण सवीर्याः वीर्यसहिताः 'करणबोरिएणं' करणवीर्येण 'सीरिया वि' सवीर्या अपि 'अबीरियावि' अपि-अवीर्या अपि । पुनः प्रश्नयति- से केणटेणं०' तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते यत् नारकजीवाःसवीर्या अपि अधीर्या अपि, भगवानाह-'गोयमें' त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जेसिं गं णेरइयाणं अत्थि' येषां खलु नैरयिकाणाम् अस्ति 'उठाणे कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कारपरक्कमे' उत्थानं कर्म बलं वीर्य पुरुषकारः पराक्रमः, तत्र उत्थानम्-चेष्टाविशेषः, कर्म = भ्रमणादिक्रिया, बलम्-शरीरसामर्थ्यम् , वीर्यम् आत्मप्रभवं बलम् , पुरुषकार:-अभिमानविशेषः, पराक्रमः-निष्पादितस्त्र विषयः पुरुषकार एव । तेणं नेरइया' ते खलु नैरयिकाः हे गौतम ! नारकजीव लब्धिवीर्य की अपेक्षा लेकर तो वीर्य सहित के होते है और करणवीर्य की अपेक्षा लेकर वीर्यसहित भी होते हैं और वीर्यरहित भी होते हैं (से केणटेणं० ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि नारक जीव लब्धिवीर्य की अपेक्षा से तो वीर्यसहित होते हैं और करणवीर्य की अपेक्षा से वे वीर्यसहित भी होते हैं और वीयरहित भी होते हैं ( गोयमा ! जेसिं गं नेरइयाणं अस्थि उठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसकारपरकमे ते णं नेरइया लद्धिवीरिएणं वि सवीरिया, करणवीरिएण वि सवीरिया ) हे गौतम ! जिन नारकों के उत्थान कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकारपराक्रम है वे नारकलब्धिवीर्य की अपेक्षा से भी वीर्यवाले हैं और करणवीर्य की अपेक्षा से भी वीर्य वाले हैं । चेष्टा विशेष का नाम उत्थान है। भ्रमणादि क्रिया का नाम कर्म है। शारीरिकसामर्थ्य का नाम बल है। आत्मोत्थवल का नाम वीर्य है। अभिमान નારક છે લબ્ધિવીર્યની અપેક્ષાએ વીર્યસહિત હોય છે, અને કરણવીર્યની अपेक्षा वायसहित ५५ डाय छ भने पाय२हित ५ सय छे. (से केणट्रेण ) 3 मावन् ! मा५ ॥ ४ारणे मे डा छ। है ना२४ व दधिવીર્યની અપેક્ષાએ વીર્યસહિત હોય છે, અને કરણવીર્યની અપેક્ષાએ વીર્યયુક્ત ५ उय छ भने वीडित ५५ डाय छे ? ( गोयमा ! जेसिं ण नेरइयाण अस्थि उदाणे कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे ते ण नेरइया लद्धिवीरिएण' वि सवीरिया, करणवीरिएण वि सवीरिया) गौतम ! २ नारीने उत्थान કમ, બળ, વીર્ય અને પુરુષકાર પરાક્રમ છે, તે નારકે લબ્ધિવીર્યની અપેક્ષાએ પણ વયવાળા છે અને કરણવીર્યની અપેક્ષાએ પણ વીર્યવાળા છે. ચેષ્ટાવિ– શેષને ઉત્થાન કહે છે. ભ્રમણાદિ ક્રિયાને કર્મ કહે છે, શારીરિક સામને બળ કહે છે. આત્મબળને વીર્ય કહે છે. અભિમાન વિશેષને પુરુષકાર કહે છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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