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________________ २०६२ भगवतीसूत्रे जीवदेशाः जीवमदेशाः अजीवाः अजीवदेशाः अजीवप्रदेशाः? गौतम ! जीवा अपि जीवदेशा अपि जीवमदेशा अपि अजीवा अपि अजीव देशा अपि अजीवमदेशा अपि ये जीवास्ते नियमात् एकेन्द्रियाः द्वीन्द्रिया स्त्रीन्द्रियश्तुरिन्द्रियाः पश्चेन्द्रियाः अनिन्द्रियाः ये जीवदेशास्तेनियमात् एकेन्द्रियदेशाः यावदनिन्द्रियदेशाः ये जीवप्रअकाश के ये हैं-(लोयागासे य अलोयागासे य) एक लोकाकाश दूसरा अलोकाकाश । (लोयागासे गं भंते ! किं जीवा, जीवदेसा, जीवप्पएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवप्पएसा) हे भदन्त ! लोकाकाश में जीव हैं? या जोव के देश है ? अथवा कि जीवको प्रदेश हैं ? अजीव हैं ? या अजीव के देश है ? अथवा कि अजीव के प्रदेश है ? (गोयमा!) हे गौतम! (जीवा वि, जीवदेसा वि, जीवप्पएसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवप्पएसा वि,) उस लाकाकाश में जीव भी हैं, जीवके देश भी हैं और जीव के प्रदेश भी हैं। अजीव भी हैं, अजीवके देश भी हैं, तथा अजीव के प्रदेश भी हैं। (जे जीरा ते नियमा एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिय, पंचिदिया, अणिदिया) जब ऐसा माना जाता है कि लोकाकाश में जीव हैं अर्थात् लोकाकाश में जीव रहते हैं-तो जो जीव उस लोकाकाश में रहते हैं-वे जीव नियम से कोईतो एकइन्द्रिय वाले होते हैं, कोई दो इन्द्रिय वाले हाते हैं, कोई तीन इन्द्रिय वाले होते हैं, कई चार इन्द्रिय वाले होते हैं, कोई पांच इन्द्रिय वाले होते हैं और कोई अनिन्द्रिय-विना इन्द्रियों के होते हैं । (जे जीवदेसा ते नियमा एal अने (२) Aqatta. ( लोयागासेण भवे ! किं जीवा, जीव देसा, जीवप्पएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजोवप्पएसा ) महन्त ! aai शु જીવે છે? કે જીવના દેશ છે કે જીવનાપ્રદેશ છે? કે અજીવ છે? કે અજીવના शी छ ? सपना प्रशा छ ? ( गोयमो!) गौतम ! (जीवा वि, जीवदेसा वि..जीवप्पएसा वि, अजीवा वि अजीव देखावि अजीवप्पएसा वि) aati જે પણ છે, જીવના દેશ પણ છે, અને જીવના પ્રદેશ પણ છે, અજીવ ५९ छ, 04 हेश ५ छ भने म न प्रवेश पर छ. ( जे जीवा ते नियमा एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चरिंदिया, पंचिंदिया, अणिदिया) attશમાં જે જ રહે છે તેમાંના કેઈ જીવ નિયમથી જ એક ઈન્દ્રિયવાળા હોય છે, કેઈ બે ઇન્દ્રિયેવાળા હોય છે, કેઈ ત્રણ ઈન્દ્રિયવાળા હોય છે, કઈચાર ઈન્દ્રિયવાળા હોય છે, કે પાંચ ઇન્દ્રિયવાળા હોય છે અને કોઈ અનિન્દ્રિય धन्द्रिय विनाना खाय छे. (जे जीवदेसा ते नियमा एगदियदेसा) at શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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