SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे मल्पसमयपरिमाणताप्रापणेन छिद्यमानं छिन्नमिति कथ्यते, इत्यभिप्रायः। _ 'भिज्जमाणे भिण्णे' भिद्यमानं भिन्नमिति तु अनुभागविशिष्टकर्माभिप्रायेण कथितम् । कर्मपुद्गलानामेव शुभोऽशुभो वा घात्यघाती वा यो रसः स अनुभागबन्धा, सयोगिकेवली कर्मणां स्थितिघातकाले रसघातं करोति, ततश्च तादृशरसघात एव भेदनम् , स्थितिघातापेक्षया रसघातोऽत्यन्तमधिकः। ईदृशं रसघातमादाय छिद्यमानं छिन्नमित्युक्तम् । प्रथमं स्थितिघातः प्रतिपादितः, अत्र तु रसघात इति छेदन-भेदनयोविभिन्नार्थता स्फुटीभवति ।। घात है । इस तरह कर्मों की जो स्थिति दीर्घकाल की है उसे अल्पसमय परिमाणवाली करना यही छिद्यमान को छिन्नरूप से कहना है । ऐसा "छिज्जमाणे छिण्णे" इस सूत्र का अभिप्राय है। ___"भिज़्जमाणे भिण्णे" जिसका भिदना चालू हो गया है वह भिद चुका, ऐसाजो कहा है वह तो अनुभागबंधविशिष्ट कर्मके अभिप्रायसे कहा गया है। कर्मपुद्गल का शुभ अथवा अशुभ,घाती अथवा अघातीरूप जोरस है वह अनुभागबंध है । सयोगीकेवली भगवान् कमों की स्थितिघात के समयमें उनके रसका भी घात करते हैं। यह रसघात हो कर्मोंका भिदना है। स्थितिघात की अपेक्षा रसघात अत्यन्त अधिक होता है। ऐसे रसघात की अपेक्षा लेकर “छिद्यमानं छिन्नं" यह सूत्र कहा है। "छिज्जमाणे छिण्णे" इस सूत्र में स्थितिघात की अपेक्षा छिद्यमान को छिन्न कहा है, और इस "भिज्जमाणे भिण्णे" सूत्र में रसघातकी अपेक्षा भिद्यमान को भिन्न कहा है। इस तरह छेदन और भेदन में विभिन्नार्थता स्पष्ट हो जाती है । આ રીતે કમની જે દીર્ઘકાળની સ્થિતિ છે તેને અલ્પ સમયની કરવી તેને જ 'छिज्जमाणे छिण्णे' ४ छ-छातi नि छायां ४ छे. "भिज्जमाणे भिण्णे" २ भनिसहन यायुथ युं ते महायूच्या मेरे ४વામાં આવે છે તે અનુભાગબંધ વાળા કર્મની અપેક્ષાએ કહેવાય છે. કર્મપુદ્ગલેને શુભ અથવા અશુભ, ઘાતી અથવા અઘાતીરૂપ જે રસ હોય છે તેનું નામ અનુભાગ બંધ છે. સગી કેવલી ભગવાન કર્મોની સ્થિતિને ઘાત કરતી વખતે તેમના રસને પણ ઘાત કરે છે. આ રસઘાત એટલે જ કર્મોનું ભેદન. સ્થિતિઘાત ४२i २सघात घणे! ४ वधारे थाय छे. मेवा २सघातनी अपेक्षा "छिद्यमान " सत्र उवामां माव्युछ. “छिज्जमाणे छिण्णे” २मा सूत्रमा स्थितियातनी अपेक्षा विमानन छिन्न. ४९स छ. सन २॥ “भिज्जमाणे भिण्णे" सूत्रमा રસઘાતની અપેક્ષાએ બિદ્યમાન ભેદાતા-ને ભિન્ન–ભેદાઈ ગયું-કહેલ છે. આ રીતે છેદન અને ભેદનમાં વિભિન્નાર્થતા સ્પષ્ટ થાય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy