SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 941
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायाङ्गसूत्रे ९२२ वासा) ते खलु ज्योतिपिकविमानावासाः - ये ज्यौतिषिक विमानाबास अन्ग्यमूसिय पहसिया ) अभ्युद्गतोच्छ्रितप्रभासिताः- समस्त दिशाओं में बड़े वेग से फैलती हुई अपनी प्रभा से शुभ बने हुए हैं। (विविहमणिरयण भत्तिचित्ता) विविधमणि रत्न भक्तिचित्राः - अनेक प्रकार की चन्द्रकान्त यदि मणियों की तथा कर्केतनादिक रत्नों की विशेष रचना से ये अपूर्व शोभावाले हैं । ( वाउयविजयवेजयंतीप डागछ साइछत्त कलिया ) वातोद्तविजय वैजयन्तीपताकाच्छत्रातिछत्रकलिताः -- तथा पवन से उडती हुई विजयसूचक वैजयन्तियों से और साधारण पताकाओं से एवं छत्रातिच्छत्रों से-उपर उपर स्थापित छत्रों से विस्तीर्ण छत्रों से युक्त है। (तुंगा) तुङ्गा - बहुत ऊँचे हैं। (गगणतलमणुलित सिहरा) गगनतला लिहच्छिखरा:- इसी कारण ये अपनी शिखरों से- अग्र भागों से मानो आकाशतव को छू रहे हैं । ( जालंतररयणपंजरुम्मिलियव्यमणिकणगथूभि यागा) जालान्तररत्नाः पञ्जरान्मीलिता इव मणिकनकस्तूयिकाः- इनकी खिडकियों के मध्यभाग में रत्न जडे हुए हैं । जिस प्रकार घर के भीतर से कोइ निकाली गई वस्तु धूलि आदि के संसर्ग से रहित होने के कारण निर्मल रूप से शोभित होती है उसी प्रकार ये विमानावास भी शोभित होते हैं। इन विमानावासों की जो लघुशिखरे हैं वे मणि और विमानावासाः - ज्योतिषीदेवाना ते विभानाव से (अब्भुग्गय मूसियपहसिया ) अभ्युद्गतोच्छ्रित प्रभासिताः:-સમસ્ત દિશાઓમાં ઘણા વેગથી ફેલાતી પેાતાની अलावडे शुभ्र लासे छे. (विविहमणिरयणभत्तिचि 1) विविधमणिरत्नभक्तिचित्राः - यन्द्रअन्त आदि अनेड प्रहारमा भगियोन तथा अर्डेतन आदि रत्नाना વિશિષ્ટ રચનાથી તેમની શોભા અપૂર્વ લાગે છે. ( वाउयविजयवेजयंती पागछताछत्तकलिया) वातो इतविजय वैजयन्तीपताकाच्छत्रा तिछत्रकलिताः- --—તથા તે વિમાનાવ સેા પવનથી ઉડતી વિષયસૂચક વૈજયન્તી માળાએથ અને ધજાપતાકાઓથી અને ઉપરાઉપરી રહેલાં વિસ્તીણુ છત્રાથી યુકત હોય છે, (तुंगा) तुङ्गा-अने घया था होय छे. तेथी ( गगणतललितसिहरा) गगनतलानु लिहच्छ्रखराः - तेथे पोताना शिशवडे - अग्रभागी वडे साशने मडतां हे।य मेवां लागे छे. ( जालंतररयण पंजरुम्मिलियव्वमणि कणगथूमियागा) जालान्तररत्नाः पञ्जरोन्मीलिता इव मणिकनकस्तूपिकाः - तेमनी ખારીઓના મધ્યભાગમાં રત્ના જડેલાં છે. જેવી રીતે ઘરમાં રાખેલી વસ્તુને ધૂળ આદિને સંસગ થતા ન હેાવાથી, તે વસ્તુને ઘરમાંથી બહાર કાઢીએ ત્યારે નિર્માળ હાવાથી શૈાભી ઉઠે છે એ જ પ્રમાણે તે વિમાનાવાસા પણ નિમાઁળતાને લીધે શાલે છે તે વિમાનાવાસેાના જે નાનાં શિખા છે તે મણિ અને શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy