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________________ भावबोधिनी टीका. पञ्चमसमवाये क्रियादिनिरूपणम् सन्ति एके भवसिद्धिका जीवाः ये चतुर्भिर्भवग्रहणैः सेत्स्यन्ति, भोत्स्यन्ते, मोक्ष्यन्ति, परिनिर्वास्यन्ति, सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्ति ॥१७|| पञ्चमं समवायाङ्गमाह-- मूलम्-पंच किरिया पण्णत्ता, तद्यथा-काइया, अहिगरणिया, पाउसिया, पारितावणिया पाणाइवाय किरिया। पंचमहव्वयापण्णत्तातं जहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिग्णादाणाओ वेरमणं सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं । पंचकामगुणा पण्णत्ता, तं जहा सदा रूवारसा गंधा फासा। पंच आसवदारा पण्णत्ता, तं जहा मिच्छत्तं, अविरई, पमाया, कसाया, जोगा। पंच संवरदारा पण्णत्ता, तं जहा-सम्मत्तं, विरई, अप्पमत्तया, अकसाया, अजोगया। पंच निजरट्ठाणा पण्णता, तं जहा-पाणाइवायाओ वेरमणं, मुसावायाओ वेरमणं, अदिन्नादाणाओ वेरमणं, मेहुणाओ वेरमणं, परिग्गहाओ वेरमणं । पंच समिईओ पण्णत्ता, तं जहा-ईरियासमिई, भासासमिई, एसणासमिई, आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई, उच्चारपासवण खेलजल्लसिंघाणपरिट्टावणिया समिई। पंच अस्थिकाया पण्णत्ता, तं जहा-धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए,आगासस्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए । रोहिणीनक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते । पुणव्वसु नवखत्ते पंचतारे पण्णत्ते । हत्थनक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते विसाहानक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते। धणिट्टानक्खत्ते पंचतारे पण्णत्ते ॥१८॥ अनन्तर आहारसंज्ञा उत्पन्न होती है-इन देवों में कितनेक देव भवसिद्धिक होते हैं जो चार भव ग्रहण करने के बाद सिद्ध हो जायेंगे, बुद्ध हो जावेंगे, कर्मों से छूट जावेंगे, परिनित हो जायेंगे और समस्त दुःखों का अंत कर देंगे ॥सू० १७॥ આહાર સંજ્ઞા થાય છે તે દેવોમાં કેટલાક દે ભવસિદ્ધિક હોય છે, જેઓ ચાર ભવ કરીને સિદ્ધ બનશે, બુદ્ધ થશે, કર્મોથી મુકત થશે, પરિનિવૃત થશે અને સમસ્ત દુઃખને અંત કરશે. સૃ. ૧૭ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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