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________________ भावबोधिनी टीका. २४ तीर्थकराणां प्रथमभिक्षादायकनामादिनिरूपणम् १०७५ जोडकर (तं कालं तं समयं) तस्मिन् काले तस्मिन समये-उसकाल मे और उससमय में (जिणवरिंदे पडिलाभेइ) जिनवरेन्द्रान् प्रतिलम्भयतिजिनेन्द्रों को आहारदान दिया था। (संवच्छरेण भिक्खा लद्धा उसमेण लोयणाहेण) संवत्सरेण भिक्षालब्धा ऋषभेण लोकनाथेन-लोक के नाथ ऋषभनाथ भगवान् ने एक वर्ष में प्रथम भिक्षा प्राप्त की है (सेसेहि बीय दिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ) शेषैर्दितीयदिवसे लब्धाः प्रथमभिक्षा बाकी के तेवीस २३ तीर्थकरों ने दूसरे दिन भिक्षा प्राप्त की हैं। (उस भस्स पढ मभिक्खा खोयरसो आसि लोगणाहस्स)ऋषभस्य प्रथमभिक्षा इक्षु रस आसीत् लोकनाथस्य-लोकनाथ ऋषभदेव की प्रथम भिक्षा इक्षु रसको थी (सेसाणं परमणं अमिय रस रसोवमं आसि) शेषाणां परमान्नं अमृतरसरसोपमं आसीत-तेवीस तीर्थकरों की प्रथम भिक्षा अमृतरसके समान खीर की थी।(सव्वेसिं जिणाणं जहियं लद्धा उ पढमभिक्खाउ तहियंवसुधाराओ सरीरमेत्तीओ वुट्टाओ) सर्वैरपि जिनयंत्रलब्धाः प्रथमभिक्षा:-तत्र वसुधाराः शरीरमात्राः वृष्टा-समस्त तीर्थकरों ने जहां २ प्रथमभिक्षा ग्रहण की, वहां २ शरीर प्रमाण द्रव्य की वर्षा हुई है।सू०१९९॥ समय)तस्मिन् काले तस्मिन् समये-ते ४ाणे भने ते समय (जिणवरिंदे पडिलाभेइ) जिनवरेन्द्रान् प्रतिलम्भयति मिनेन्द्रोने मान हीधुतु (संवच्छरेण भिक्खालद्धा उसभेण लोयणाहेण) संवत्सरेण भिक्षालब्धा ऋषभेण लोकनाथेनसोना ना भगवान ऋषलवे ४ ५ पडली लक्षा प्राप्त ४२री ती. (सेसे हिं वीयदिवसे लद्धाओ पहमभिक्खाओ) शेर्द्वितीयदिवसे लब्धाः प्रथम भिक्षा:-मीना तीथं शये मारे ६५से प्रथम मिक्षा पास ४२॥ ती. (उसभस्स पढमभिक्खा खोयरसो आसि लागणाहस्स)ऋषभस्य प्रथमभिक्षा इक्षुरस आसीत्-लोकनाथस्य-सोनाथ अपमहेवने प्रथम निक्षा क्षुरस (शे२डीन। २स) नी भनी ती (सेसाणं परमण्णं अमियरसरसोवर्म आसि) शेषाणां परमान्नं अमृतरस रसोपमं आसीत्-uslit तेवीस तीर्थ . ४ोने प्रथम लिक्षामा मभृत२स 2ी मार मणी ती. (सव्वेसिं जिणाणं जहियं लद्वाउ पढम भिक्खाउ, तहियं वसुधाराओ सरीरमेत्तीओ वुढाओ) सर्वै. रपि जिनैर्यत्रलब्धाः प्रथमभिक्षाः तत्र वसुधाराः शरीरमात्राः वृष्टा-समस्त તીર્થકરેએ જ્યાં જ્યાં પહેલી ભિક્ષા ગ્રહણ કરી, ત્યાં ત્યાં શરીરપ્રમાણ દ્રવ્યની વૃષ્ટિ થઈ હતી. એ સૂ ૧૯૯૫ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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