SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 473
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुघा टीका स्था०२ उ० ३ सू० ३५ जम्बूद्वीपादीनां वेदिकानिरूपणम् 1 ' तद्देव्योऽप्येवं द्वादशेति । चतुर्दशानां गङ्गादिमहानदीनां पूर्वार्द्ध पश्चिमादक्षया द्विगुणत्वात्तत्प्रपातहूदा अपि द्वौ द्वौ स्युरतएवाह - ' दो गंगप्पवायद्दहा ' इत्यारभ्य दो रतत्रयवायदा इत्यन्तानि पूर्वोक्तद्वात्रिंशसमंसूत्रोक्तानि चतुर्दश प्रपातहृदयुगलानि भवन्ति । ' दो रोहियाओ' इत्यादि, रोहिदादयो रूप्यकूलापर्यन्ता अत्रस्थद्वात्रिंशत्तमसूत्रोक्ता अष्टौ नद्यो युगलत्वेन सन्ति, तथाहिरोहिता १, हरिकान्ता २, हरित् ३, शीतोदा ४, शीता ५, नारीकान्ता ६, नरकान्ता ७, रूप्यकूला ८ । ' दो गाहावईओ ' इत्यादि, चित्रकूट - पद्मकूट- वक्षस्कातयोरन्तरे नीलवद्वर्षधरवपत्र तैकभागव्यवस्थिताद् ग्राहवतीकुण्डाद्दक्षिणतोरण ४५७ " इन हदों में निवास करनेवाली देवियों की भी संख्या १२ हो जाती है । इसी तरह से गंगा सिन्धु आदि महानदियों के पूर्वार्द्ध और पश्चिमा की अपेक्षा द्विगुण होने से प्रपातहूद भी दो दो हैं । इसीलिये “ दो गंगपवायदा " से लेकर " दो रत्तवइप्पवायद्दहा " तक के ३२ वें सूत्र में १४ प्रपातहद युगल प्रकट किये गये हैं । " दो रोहियाओ " इत्यादि रोहिता से रूप्यकूला तक नदियों के दो दो युगल हैं। " दो गाहाचईओ " इत्यादि दो ग्राहवती नदियां हैं। ये नदियां चित्रकूट और पद्मकूट नामके दो वक्षस्कार पर्वतों के अन्तर में नीलवद्वर्षधर पर्वत के एकभाग में व्यवस्थित ग्राहवतीकुण्ड से दक्षिणतोरण से विनिर्गत हैं इनकी परिवार नदियां २८-२८ हजार हैं। ये दोनों ग्राहयती नदियां सीतानदी में जाकर मिली हैं। सुकच्छ और महाकच्छ नामक दो विजयों का इनसे 16 તે હંફ્રેમાં નિવાસ કરનારી દેવીઓની સખ્યા પણ ૧૨ ની છે. એજ પ્રમાણે ગંગા, સિન્ધુ આદિ નદીઓની સ*ખ્યા પણ પૂર્વાદ્ધ અને પશ્ચિમાની અપેક્ષાએ ખમણી થતી હાવાથી પ્રપાતહદ પણ ખખે છે. તેથી दो गंगप्पवाह हा थी साने " दो रत्तयइप्पवायद्दहा " पर्यन्तना ३२ भां सूत्रमा १४ પ્રપાતહદ યુગલા પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે. 59 66 " दो रोहियाओ " त्याहि रोहिताथी सहने रुप्यसा पर्यन्तना नहीએના અબ્બે યુગલ છે. दो गाहावईओ " त्याहि मे श्राद्धपती नहीओ। છે. તે નદીઓ ચિત્રકૂટ અને પદ્મકૂટ નામના એ વક્ષસ્કાર પતાની વચ્ચે નીલવત્ વષધર પર્વતના એક ભાગમાં આવેલા ગ્રાહવતીકુંડના દક્ષિણ તારણુમાંથી નીકળે છે, તેમની પરિવાર નદીએ ૨૮-૨૮ છે. તે બન્ને ગ્રાહવતી નદીએ સીતા નદીને મળે છે. સુકચ્છ અને મહાકચ્છ નામના બે વિજયાનું था ५८ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧
SR No.006309
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy