SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 562
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५५१ मूलम्-पंडिए वीरियं लेद्धं निग्यायाय पंवत्तगं। धुणे पुवकडं कम्मं गवं वाऽविण कुव्यइ ॥२२॥ छाया-पण्डितो वीर्य लन्ध्धा निर्घाताय प्रवर्तकम् । धुनीयात् पूर्वकृतं कर्म नवं वाऽपि न कुर्यात् ॥२२॥ अन्वयार्थः- (पंडीए) पण्डितः सदसद्विवेकी (निग्घायाय) निर्धाताय निःशेषकर्मणां निर्जरणाय (पवत्तगं) प्रवर्तकं (वीरिय) वीर्य-पण्डितवीर्यम् (लधु) लब्ध्वा-अवाप्य (पुठयक्ड) पूकृतं पूर्व भवेषु यत्कृतं (कम्म) कर्म-ज्ञानावरणीयादिकमष्टप्रकारकम् (धुणे) धुनीयात् अपनयेत् तथा (णवं) नव-नवीनं (सावि) वापि (ण कुचई) न कुर्यादिति । २२॥ 'पंडिए वीरिय' इत्यादि। शब्दार्थ--पंडिए-पण्डिता' सदसत् विवेक को जानने वाला पुरुष 'निग्यायाय-निर्घाताय' अशेष कर्म की निर्जरा के लिये 'पवत्तगंप्रवर्तकम्' कर्मक्षपण योग्य 'वीरियं-वीर्यम्' पंडित वीर्य को 'लद्धलब्ध्वा' प्राप्त करके 'पुव्व कडं-पूर्वकृतम्' पूर्वभवमें किये 'कम्म-कर्म ज्ञानावरणीयादि आठ प्रकार के कर्मको 'धुणे-धुनोयात्' दूर करे तथा 'णवं-नवं' नवीन 'वावि-वापि' अथवा 'ण कुव्वह-न कुर्यात्' न करे ॥२२॥ ___अन्वयार्थ-हेय और उपादेय का विवेक रखने वाला पण्डित (मेधावी) पुरुष समस्त कर्मों की निर्जरा के प्रवर्तक पण्डितवीर्य को प्राप्त करके पूर्वोपार्जित ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्मों का क्षय करे और नवीन कर्म उपार्जन न करे ॥२२॥ 'पंडिए वीरियं लटुं' त्या शहा- 'पंडिए-पण्डितः' सतू असत् विवेने पापा ५३५ 'निग्धायाय-निर्घाताय' अशेष भनी नि। भाटे 'पवत्तगं-प्रवर्तकम्' अभक्ष. ५ योग्य 'वीरिय-वीर्यम्' ५डित वायर 'लढुं-लब्ध्वा' प्रात शन. 'पुव्वकडं-पूर्व कृतम्' पूममा ४२४ा 'कम्म कर्मम्' ज्ञानाव२०ीय विगैरे मा। प्रा२न भने 'धुणे-धुनीयात्' ६२ ४३ तथा 'णवं-नवम्' नवीन 'वावि-वापि' मथवा 'ण कुव्वइ-न कुर्यात्' न ४२ ॥२२॥ અન્વયાર્થ–હેય અને ઉપાદેયને વિવેક રાખવા વાળા પંડિત (મેધાવી) પુરૂષ સઘળા કર્મોની નિર્જરાના પ્રવર્તક પંડિત વીર્યને પ્રાપ્ત કરીને પૂર્વોપાર્જિત જ્ઞાનાવરણીય વિગેરે કર્મોને ક્ષય અને નવા કર્મોનું ઉપાર્જન ન કરે પરરા श्रीसूत्रकृतांगसूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy