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________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५२५ ___ अन्वयार्थः-अथ (आरतमैथुनः) इत्यनेन किम् ? इत्यत्रोपदेशमाह-आरतमैथुनो मुनिः (गीवारेव) नीवारे इव-नीबारे जाले बन्धनार्थ प्रक्षिप्ते धान्यकणे कपोतशूकरादि प्राणी इव (ण लीएज्जा) न लीयेत-स्त्रीसङ्गे लीनो न भवेत् । यथा सूकरो धान्यकणासक्त्या जाले बद्धः कुमरणेन म्रियते, तथैव मनुष्योऽपि नीवारसदृशे स्त्रीसङ्गे लोनो भूत्वा तन्मोहजालबद्धो बालमरणेन म्रियतेऽतो मुनि ने तत्रासक्तिं भजेदिति भावः । कीदृशः सन्नित्याह-(छिन्नसोए) छिन्नस्रोताः अवरुद्धपाणातिपातादिपापागमनमार्गः, अतएव (अणाविले) अनाविलः रागद्वेषादि द्वेष आदि मलसे जो रहित है एवं 'अणाउले-अनाकुलः' स्वस्थचित्त होता हुआ 'सया दंते-सदा दान्तः सदैव वशीकृतेन्द्रिय होनेवाला मुनि 'अणेलिसं-अनीदृशम्' अनुपम ऐसी 'संधि-सन्धिम्' भावसमाधि को 'पत्ते-प्राप्त:' प्राप्त करता है ।।१२।। अन्वयार्थ-- मैथुन से विरत होने का फल क्या होता है, यह यहां कहा जाता है-जैसे बन्धन में फांसने के लिए धान्य के दाने बिखेर दिये जाते हैं और कपोत शूकर आदि जीव उनके लोभ में न आकर फंस जाते हैं, इस प्रकार साधु स्त्री के जाल में फंसे । तात्पर्य यह है कि जैसे शूकर धान्य कणों में आसक्त होकर जाल में फंस जाता है और बुरी मौत से मरता है, उसी प्रकार मनुष्य धान्य कणों के समान स्त्री के बन्धन में पड़कर बालमरण से मरता है, अत एव मुनि उसमें आसक्ति न धारण करे। दंते-सदा दान्तः' सह इन्द्रयाने वश मवावा मुनि 'अणेलिसं-अनीहशम्' अनुपम सेवी संधि-सन्धिम्' मा समाधिन 'पत्ते-प्राप्तः' प्राप्त ४रे छे. ॥१२॥ मन्या --भैथुनथी विरत पाथी शु३७१ थाय छ । 22 माह डेવામાં આવે છે. જેમ બંધનમાં ફસાવવા માટે અનાજના કણે વેરવામાં આવે છે. અને કબૂતર વિગેરે છે તે કોને પ્રાપ્ત કરવાના લેથી આવીને ફસાઈ જાય છે. એ જ પ્રમાણે સાધુએ સ્ત્રિની જાળમાં ફસાવું નહી. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-જેમ કબૂતર વિગેરે ધાન્યના કણેમાં આસક્ત થઈને જાળમાં ફસાઈ જાય છે, અને ખરાબ માતથી મરે છે. એજ પ્રમાણે મનુષ્ય ધાન્ય કસરખી સ્ત્રિના બંધનમાં પડીને બાલમરણથી મરે छ. ती भुनिये तमा भासत थ नही. श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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