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________________ ४७२ सूत्रकृताङ्गसूत्र अन्वयार्थः - (अहा बुइयाई) ययोक्तानि-तीर्थकुदुक्ताचाराङ्गादिमूत्राणि 'मुसि. क्खएज्जा' मुशिक्षेत-आसेवनशिक्षया सेवेत, अन्येभ्यस्तथैव प्रतिपादयेच्च एवम्-'जइज' यतेत-आगमाभ्यासाय प्रयत्न कुर्वीत (या) च तथा (णाइवेलं) नातिवेलम्-कालिकोत्कालिकागमाऽध्ययनमर्यादामुल्लङ्घ्य (न वएज्जा) न वदेत् पुनः उपदेशविधि कहते हैं-'अहा बुहयाई' इत्यादि। शब्दार्थ--अहा बुझ्याई-यथोक्तानि' तीर्थ कर प्रतिपादित आचाराङ्ग आदि सूत्रों को 'सुसिक्खएज्जा-सुशिक्षेल' अच्छीतरह सीखे तथा 'जइ. ज्जया-यतेन' आगमके अभ्यास का प्रयल करे 'णाइवे-नातिवेलं' मर्यादा का उल्लंघन करके 'न वएज्जा-न वदेत' वाणी न कहे 'से-सः' ऐसा करने वाला साधु 'दिटिमं-दृष्टिपान' सम्यक् ज्ञानवाला 'दिहि-- दृष्टिम्' सम्यक्रदर्शन को 'ण लुस एज्जा-न लूषयेत' दूषित न करे अर्थात् जिनवचन विरुद्ध प्ररूपणा न करे 'से-सः' ऐसा मुनि 'तं-तम्' सर्वज्ञ कथित 'समाहि-समाधिम्' सम्यकज्ञान दर्शन को 'भासिउं-भाषितुम्' प्ररूपणा करने को 'जाणइ-जानाति' जानते हैं ।।२५।। । अन्वयार्ध-साधु पुरुष तीर्थ कर प्रतिपादित आचाराङ्ग आदि सूत्रों का सम्यक प्रकार से ग्रहण आसेवन शिक्षा द्वारा सेवन करे और दूसरे को वैसे ही कहे एवं आगम का अभ्यास के लिये प्रयत्न करे। शथी ५५ उपदेशनी विवि मतावतi सूत्र.२ ४९ छ -'अहा बुइ. याई' त्या - अहा बुइयाई- यथोक्तानि' ती ४२ प्रतिपाहित मायाराम विगेरे सूत्रीने 'सुसिक्खएज्जा-सुशिक्षयेत' सारी ते शीमे तथा 'जइज्जया-यतेत' भामना सल्याने प्रयत्न ४२ 'णाइवेलं-नातिवेलम्' महानु Gea'धन प्रशने 'न वएज्जा-न वदेत' quनु या२४ न 'से-सः' में प्रमाणे पतना। साधु 'दिदिम-दृष्टिमान्' सभ्य ज्ञानवाणे'दिदि-दृष्टिम्' सम्५५ दृशनने 'ण लूसएज्जा-न लूषयेत्' ष युटत न ४२ अर्थात् नवयनथा वि३१ ३५९।। ४२ 'से-सः' मेवो भुनि 'तं-तम्' सवज्ञ द्वारा अथित 'समाहि-समाधिम्' सभ्य ज्ञान शनने 'भासिउ-भाषितुम् ५३५५॥ ४२वाने 'जाणइ-जानाति' लणे छ. ॥२५॥ અન્વયાર્થ–સાધુ પુરૂષ તીર્થંકર પ્રતિપાદિત આચારાંગ આદિ સત્રનું સારી રીતે ગ્રહણ આસેવન શિક્ષા દ્વારા સેવન કરે અને બીજાઓને એજ રીતે કહે તથા આગમન અભ્યાસ માટે પ્રયત્ન કરે પરંતુ કાલિક ઉત્કાલિક श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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